रायपुर—-एतिहासिक जवाहर नगर स्थित राधाकृष्ण मंदिर में शनिवार को रीति रिवाज और परम्परागत तरीके से धूमधाम के साथ शरदपूर्णिमा उत्सव मनाया जाएगा। देर रात भजन संध्या के बाद रात्रि 12 बजे महाआरती की जाएगी। महाआरती के बाद खीर प्रसाद का वितरण किया जाएगा। इस मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहेंगे।
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एतिहासिक राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी लल्लू महाराज ने बताया की शरद पूर्णिमा उत्सव में शाम 6 बजे महाप्रभु जुगल-जोड़ी सरकार की आराधना और साज श्रृंगार किया जाएगा। रात्रि 8.30 बजे आरती के बाद उपस्थित भक्त मधुर भजनों का रसपान करेंगे। भजन कार्यक्रम मध्य रात्रि 12 बजे तक चलेगा। इसके बाद महाआरती और खीर का प्रसाद वितरण किया जाएगा।
पुजारी के नुसार ज्योतिष की मान्यता है कि वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है। धर्मशास्त्रों में इस दिन को ‘कोजागर व्रत’ माना गया है। इसी को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है। कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण को ‘कार्तिक स्नान’ करते समय कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी।
पुजारी ने बताया कि मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग भगवान कृष्ण ने रास रचाया था। आज के दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं।
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। कार्तिक का व्रत शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिये। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं, और न ही धूल-गुबार।
रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्र पूजन के बाद भोजन करते हैं। इस दिन शिव पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।
इस दिन प्रात: काल स्नान कर आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित कर आह्वान की भी परम्परा है। आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से आराध्य देव का पूजन करना चाहिये। रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर मेंघी और चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि भगवान को अर्पण करना चाहिये।