बिलासपुर—-नगर निगम विधानसभा के फरमान के बाद बिलासपुर एल्डरमैन में पहले तो काफी उत्साह देखने को मिला बाद में सामान्य सभा में कमोबेश सभी एल्डरमैन ने बहिष्कार किया। एल्डरमैन का आरोप है कि जानबूझकर महापौर के इशारे पर एल्डरमैन के प्रश्नों को प्रश्नकाल में शामिल नहीं किया गया। कुछ एल्डरमैन का आरोप है कि निगम सरकार के ही कुछ लोगों ने कांग्रेस को पीठ के पीछे एल्डरमैनों के प्रश्नों का विरोध करने को कहा। अन्यथा पहले तो एल्डरमैनों के प्रश्नों को शामिल किया जा रहा था।
निकाय प्रशासन के दिशा निर्देश और कानून के अनुसार पहली बार बिलासपुर में सामान्य सभा की बैठक विधानसभा के तर्ज पर संचालित किया गया। इसे लेकर निगम प्रशासन ने कार्यशाला का आयोजन कर पार्षदों को नियमों की जानकारी दी। प्रश्नों को पूछने के तरीके और सभापति के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया। ठीक सामान्य सभा के एक दिन पहले एल्डरमैनों के प्रश्नों को शामिल किये जाने से भाजपा खेंमें काफी नाराजगी देखी गयी। एक एल्डरमैन ने बताया कि सब कुछ सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। निर्देश में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है कि एल्डरमैन प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं।
एल्डरमैन मनीष जायसवाल ने बताया कि जब हमें प्रश्न पूछने और शहर की समस्याओं को सभा में उठाने का अधिकारी नहीं है तो हमारी उपयोगिता क्या रह जाती है। क्या सिर्फ मानदेय देने के लिए हमें एल्डरमैन बनाया गया है। अच्छा होता कि एल्डरमैन का मनोनयन ही नहीं होता। मनीष के अनुसार विपक्ष ठीक से काम नहीं कर रहा है। ऐसे में एल्डरमैन की भूमिका बढ़ जाती है। जनता से सरोकार रखने वाले सवालों को उठाने का अधिकार एल्डरमैनों की भी है। हमें मनोनित भी इसीलिए किया गया है कि जब पक्ष और विपक्ष अपनी भूमिका को सही तरह से नहीं निभा रहे हो तो एल्डमैन लोगों की समस्याओं को दलगत राजनीति से ऊपर होकर उठाएं। अफसोस है कि हमें यह अधिकार नहीं दिया गया।
कांग्रेस पार्षद दल के प्रवक्ता शैलेन्द्र ने बताया कि निकाय अधिनियम 9(1) (क) (ख) (ग) में निकाय प्रतिनिधियों की नियुक्तियों के बारे में बताया गया है। क में महापौर,अध्यक्ष, ख में पार्षदों के बारे में और ग में एल्डरमैन की नियुक्ति के बारे में बताया गया है। संशोधन के बाद ग को अधिनियम से हटा दिया गया है। इसलिए राज्य सरकार से मनोनित पार्षद प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न नहीं कर सकते हैं। भाजपा एल्डरमैनों का आरोप निराधार है कि हमने भाजपा के इशारे पर एल्डरमैन को प्रश्न नहीं करने का विरोध किया है।
एल्डरमैन राजेन्द्र भण्डारी ने बताया कि सामान्य सभा में विधानसभा के तर्ज पर केवल नौटंकी हुई है। कांग्रेस पार्षदों ने कहीं से साबित नहीं किया कि वे विधानसभा के तर्ज पर सदन को चला रहे हैं। सत्ता पक्ष भी काफी हल्का नजर आया। पूरे कार्यक्रम के दौरान केवल आरोप प्रत्यारोप लगाये गए। जनता के हितों के लिए किसी ने भी मजबूती के साथ सवाल नहींं किया। ना ही जवाब भी आया। राजेन्द्र ने कहा कि हमें अपने आप पर खीझ आती है कि हमें जनप्रतिनिधि कहा जाता है। लेकिन ऐसे जनप्रतिनिधि का क्या अर्थ जो जनता के हित में अपनी बातों को ना रख सके।
आखिर क्यों बनाया गया एल्डरमैन
सामान्य सभा के बाद चर्चा का विषय है कि आखिर एल्डरमैन की नियुक्ति ही क्यों की गयी। प्रदेश में करीब सात आठ निकाय में कांग्रेस का शासन है। जब एल्डरमैन को बोलने और सवाल करने पर प्रतिबंध है तो उनकी नियुक्ति क्यों की गयी। राजस्व पर एल्डरमैनों को बोझ क्यों बनाया गया। क्या इन्हें सिर्फ पुतला बनाकर कुर्सी भरने के लिए रखा गया है।यह जानते हुए भी बिलासपुर ही नहीं बल्कि प्रदेश के कई निगम और पंचायतों की वित्तीय हालत काफी दयनीय है। ऐसे में इन एल्डरमैनों को वेतन कहां से आता है।
एक पार्षद ने बताया कि अधिनियम में नियुक्तियों और एल्डरमैन के कार्यों के बारे में बताया गया है। लेकिन कहीं इस बात की जिक्र नहीं है कि एल्डरमैन प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं। दरअसल सोची समझी रणनीति के तहत अंसतुष्ट एल्डरमैन को किनारे करने के लिए साजिश की गयी है। साजिश में सत्ता पक्ष और विपक्ष या फिर दोनों की भूमिका हो सकती है। भाजपा पार्षद ने बताया कि जहां तक बिलासपुर की बात है तो एल्डरमैन के प्रश्न नहीं पूछने से महापौर को राहत मिली है।