बिलासपुर— छत्तीसगढ़ राजभाषा मंच के प्रांतीय संयोजक ने बिहार सरकार के फरमान का कड़ा विरोध किया है। नन्दकिशोर के अनुसार मुख्यमंत्री नितीश कुमार बिहार में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगाना चाहते हैं। प्रदेश की नौकरियों में स्थानीय लोगों को अस्सी प्रतिशत आरक्षण देकर देश के अन्य लोगों को बिहार से दूर रखना चहाते हैं। समय आ गया है कि छत्तीसगढ़ के मुखिया नीतिश के फरमान को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के युवाओं के हितों के बारे में गंभीरता से विचार विमर्श करें। जब नीतिश कुमार बिहार में स्थानीय लोगों के हितों पर बाहरी लोगों को बर्दास्त नहीं कर सकते हैं तो फिर हम क्यों बर्दास्त करें।
नन्दकिशोर शुक्ल ने बताया कि नितीश कुमार के नए फरमान और अध्यादेश आने के बाद बिहार में बाहरी लोगों का पढना लिखना और नौकरी करना मुश्किल हो जाएगा। बिहार सरकार ने नौकरी और शिक्षा में स्थानीय लोगों के लिए सीटें रिजर्व करने का मुद्दा उठाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है|
आरजेडी प्रमुख लालू यादव की मांग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी हां में हां मिला दिया है। बीजेपी और कांग्रेस ने भी लालू को मौन समर्थन दिया है। बिहार में बीजेपी स्थानीय लोगों के आरक्षण के पक्ष में है। लेकिन यही बीजेपी छत्तीसगढ़ और झारखंड में ऐसे किसी नीति का विरोध करती है।
नन्दकिशोर ने बताया कि अगर बिहार सरकार ने इस फैसले पर मुहर लगा दिया तो प्रदेश में जितने भी शैक्षणिक संस्थान हैं उसमें से 80 फीसदी सीटें बिहार के छात्रों के लिए रिजर्व हो जाएंगी। राज्य सरकार की नौकरियों में भी 80 फीसदी हिस्सा बिहार की जनता का हो जाएगा। नन्दकिशोर ने बताया कि बिहार में कुल 4 लाख सरकारी कर्मचारी काम करते हैं। इसके अलावा निजी क्षेत्रों में भी कर्मचारी काम कर रहे हैं। हालांकि इनकी संख्या ज्यादा नहीं है। लेकिन जो भी है उन पर इस स्थानीय आरक्षण के लागू होने से असर जरूर पड़ेगा ही।
वरिष्ठ पत्रकार नन्दकिशोर ने बताया कि बिहार में जितने भी बाहरी लोग नौकरी या पढ़ाई नहीं करते उससे कई ज्यादा और कई गुना लोग दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात में पढ़ाई और नौकरी करते हैं। इसकी मुख्य वजह बिहार में अच्छी नौकरी नहीं होना है। बिहार में अच्छे शिक्षण संस्थानों की भी कमी है। हजारों छात्र शिक्षा के लिए पर प्रांत की तरफ भागते हैं। इतना ही नहीं बिहार में बड़ी कंपनियां भी नहीं है जो बेरोजगारों को रोजगार दे सके।
शुक्ल ने बताया कि स्थानीयतो को लेकर मुंबई, असम में बिहारियों पर हमले होते रहते हैं। हाल फिलहाल डीयू में भी स्थानीय छात्रों के साथ नामांकन का मुद्दा उठा है। जिसका ज्यादा असर बिहार के छात्रों पर ही पड़ने वाला है। ऐसे में नीतीश सरकार का फैसला बिहार से बाहर रहने वाले बिहारियों पर और ज्यादा असर डालने वाला होगा।