नई पीढ़ी के लिए कैसा बिलासपुर बना रहे हैं हम ….?

Chief Editor
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dr devindar 1

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नई पीढ़ी के लिए कैसा बिलासपुर बना रहे हैं हम ….?बिलासपुर शहर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहाँ जो भी आता है, उसे यह शहर स्वीकार कर लेता है…। बिलासपुर के लोग सहज, सरल और मिलनसार हॆ….। शहर शांतिप्रिय और अमनचैन पसंद है…। लेकिन शहर और आगे बढ़े इसके लिए जो आक्रोश होना चाहिए वह नजर नहीं आता…। तरक्की को मामले में शहर की स्थिति की सहज स्वीकार्यता अच्छी नहीं है…। सिर्फ सिवरेज बनाने से ही शहर तरक्की नहीं करेगा और बहुत कुछ होना चाहिए….।

यह मानना है जाने- माने चिकित्सक और आई.एम.ए. के अध्यक्ष डा. देविन्दर सिंह का..। बिलासपुर के प्रति अपने लगाव की सबसे बड़ी वजह वे यही मानते हैं कि इस शहर में किसी को स्वीकार करने की गजब की ललक है। इस इलाके की सेवा को  सुखद अनुभूति मानने वाले ड़ा. सिंह कहते हैं कि ऐसे संवेदनशील लोगों के बीच अपनी सेवाएं देने वाले चाहे किसी भी पेशे में हो उसे तसल्ली मिलेगी ही। फिर चिकित्सा का क्षेत्र तो वैसे भी जनजीवन से सीधे जुड़ा हुआ है।

बिलासपुर शहर की बहुत सी खूबियां शुकून देती हैं…..। शहर में पानी की उपलब्धता, हरियाली और आबोहवा यहां आने वाले हर एक शख्स को अपने साथ हमेशा जोड़े रहती है…। यह बेजोड़ है…। लेकिन जिस रफ्तार से दुनिया आगे बढ़ रही है, उस स्पीडोमीटर को सामने रखकर अपने शहर को देखे तो लगता है कि इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए समय रहते कुछ बातों पर न सिर्फ सोचना चाहिए , बल्कि समयानुकूल कदम भी आगे बढ़ाना चाहिए। डा. देविन्दर सिंह मानते हैं कि छत्तीसगढ़ के नक्शे में बिलासपुर का कद बढ़े इसके लिए बेहद जरूरी है कि यहां पर कुछ बड़े संस्थान आएं…। हाईकोर्ट के बाद कोई और दूसरा बड़ा संस्थान नहीं स्थापित हो सका है। यह शहर केवल सिवरेज से ही बड़ा नहीं बनेगा, बल्कि  कई औऱ बड़े काम … बड़ी सुविधाओँ की जरूरत है। मसलन – बिलासपुर को हवाई सेवाओँ से जोड़ने की जरूरत है। इसके बिना बहुत सी चीजें बिलासपुर तक नहीं आ पा रही हैं। हवाई सेवा होने के बाद एजुकेशन ,मेडिकल जैसे क्षेत्रों के साथ ही अन्य सुविधाओँ से जुड़े लोगों का भी आना – जाना हो सकेगा और यहाँ पर कुछ नई शुरूआत हो सकेगी।

एक सवाल के जवाब में वे यह भी मानते हैं कि एक बड़ी कमी इस बात को लेकर है कि हम अपनी ही तरक्की को लेकर बहुत अधिक फिकर नहीं कर रहे है और न इसे लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं। कई बार यह भी लगता है कि हम शायद यह मान चुके हैं कि हम रायपुर के बराबर नहीं हो सकते । हम यदि अपने को सेकेन्ड क्लास मानेंगे तो सेकेन्ड क्लास ही रह जाएंगे। सोच प्रोग्रेसिव्ह होनी चाहिए….। ‘’कुछ मिल गया तो ठीक …..और कुछ न भी  मिले तो भी ठीक ‘’ यह सोच होगी तो तरक्की कैसे होगी ..। तरक्की को लेकर गंभीरता….जोश और आक्रोश भी नजर आना चाहिए…। बाजार बन रहे हैं….. दुकानें खुल रही हैं । मगर जिन ठोस कामों की संभावनाओँ के साथ यह शहर अपने भविष्य की ओर निहार रहा है, उस ओर किसी की नजर नहीं है। ट्रेफिक और पार्किंग तो हर शहर की समस्या है। इसके साथ ही उन कामों की ओर भी गौर करने की जरूरत है , जो शहर की पहचान बन सकते हैं।

डा. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि पहल जरूरी है। यह पहल इस सवाल के साथ करना पड़ेगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कैसा बिलासपुर बना रहे हैं ? इस सवाल पर भी गौर करना पड़ेगा कि नई जनरेशन बिलासपुर में ही रहने के लिए उत्सुक है या नहीं ? फिलहाल की स्थिति से तो ऐसा नहीं लगता….। अभी – हाल बौद्धिक पलायन की स्थिति नजर आ रही है। नई उमर के बच्चों को यहाँ पर सम्भावना नजर नहीं आती । उनके मन – मानसिकता को समझते हुए ऐसा कुछ कदम उठाना पड़ेगा जिससे कुछ बड़े शिक्षा संस्थान. आईआईटी वगैरह स्थापित हों और अपने युनिवर्सिटी का स्तर बेहतर हो…।

” प्रोग्रेसिव्ह सोच ” को तरक्की का आधार मानने वाले डा. देविन्दर सिंह को उम्मीद है कि बदलाव लाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए ठोस पहल उनकी ओर से होनी चाहिए , जो इस शहर को बेइंतहा मोहब्बत करते हैं….। सभी सोचें और सभी इस रास्ते में आगे बढ़ें तो बात बन सकती है। उनकी राय में   ‘’ हमारे कर्णधार तो ज्यादातर बिजनेस माइंड हैं, बिजनेस अच्छा चल रहा हो तो उन्हे कोई चिंता नहीं होती  ‘’ । ऐसे में सभी को मिलकर कुछ करना पड़ेगा……।

 

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