चाहिए अजय चँद्राकर जैसा ही मंत्री… !

Chief Editor
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fixed_sunday “नौकरशाही ऐसे घोड़े के समान है, जो अपनी पीठ पर बैठे सवार की समझ के हिसाब से चलता  दौड़ता है….।“ राज-काज के बारे में ये बातें कभी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहीं थी…..। वही जोगी जिन्हे कलेक्टरी (आईएएस) औऱ मुख्यमंत्री दोनों का तजुर्बा है…….। जोगी के धुर विरोधी रहे भाजपा के कद्दावर नेता दितीप सिंह जूदेव ने प्रशासनिक आतंकवाद का जुमला पेश कर सूबे की सियासत में कभी हल-चल मचा दी थी। ऐसे जूदेव जो खुद राजपरिवार में पैदा हुए थे और जिन्हे जनता के बीच लोकतंत्र की राजनीति में “दिलों का बादशाह” माना जाता था।…… कहानियों में भी सबने पढ़ा है कि राजा सही मायने में ईश्वर का प्रतिनिधि होता है……। इन कड़ियों को आपस में मिलाते चलें तो कुछ ऐसे ही “गुण-धर्म” के साथ एक औऱ कड़ी अपनी जगह बनाती दिख रही है ।इस कड़ी में अब ताजा नाम प्रदेश सरकार के मंत्री अजय च्द्राकर का भी जुड़ गया है। जो इन दिनों लोक-सुराज मुहिम के दौरान सरकारी अफसरों-मुलाजिमों को फटकार लगाने के नाम पर सुर्खियों में हैं।…….. और ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में घोड़े पर सवार होकर जनता के बीच आ गए हैं।

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ajay                       राज-काज के इस अँक में अजय चँद्राकर से जुड़ी घटनाओँ पर लिखने का मकसद उनकी बातों , दलीलों और उनके रवैये के पक्ष में लिखना नहीं है। अलबत्ता लोकतंत्र के नए अवतार में राजाओँ के रवैये की पड़ताल कर , उसके भीतर सही-गलत को खोजने की एक कोशिश जरूर है…….। हां – तो अजय चँद्राकर प्रदेश में बीजेपी के ऐसे लीडर हैं, जो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही नुमाइंदगी कर रहे हैं। उन्हे चुनाव जीतकर सरकार में बैठने का भी अच्छा तजुर्बा है और उन्होने हार का भी घूँट पिया है। वे ठेठ छत्तीसगढ़ के ऐसे तबके से आते हैं, जो किसान समाज है……। ऐसे इलाके से आते हैं, जहां लोग हाड़-तोड़ मेहनत कर माटी से सोना उपजाते हैं……। ऐसे लोगों की नुमाइंदगी करते हैं , जो लोग मानते हैं कि लोकतंत्र में भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से पैदा होने वाला राजा ( प्रतिनिधि ) ईश्वर का प्रतिनिधि होता है…..। जो लोग मानते हैं कि सरकारी तंत्र में शामिल लोग सही मायने में जनता के सेवक हैं……। और यह व्यवस्था जनता की सेवा –सुविधा और कल्याण (वेल्फेयर) के लिए है……। जिन्हे मालूम है कि सरकारी तंत्र की जवाबदेही जनता के प्रतिनिधियों के प्रति है…………। और प्रतिनिधि की जवाबदेही जनता के प्रति है।

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ऐसे में अजय चँद्राकर जो कर रहे हैं…. जो कह रहे हैं और जो बर्ताव कर रहे हैं- उस पर ऊपर से नीचे तक बड़ी बहस की गुँजाइश नजर आती है। यह सही है कि हमारी पूरी व्यवस्था में कहीं भी इस बात का समर्थन नहीं है कि मंत्री बन जाने से किसी को भी किसी के साथ बदसलूकी और कड़े रुख का हक मिल जाता है। इस नजरिए से देखें तो अजय चंद्राकर का रुख सही नजर नहीं आएगा। लेकिन ताजा घटनाक्रम में उनके जिस किरदार को लेकर चर्चा चल रही है, उससे जुड़ी एक-एक घटना को तार-तार करने की बजाए-“नटसेल” में देखें कि जनता का प्रतिनिधि अगर सेवक ( सरकारी तंत्र) को मालिक ( जनता) की सेवा के प्रति जवाबदार, जवाबदेह और ईमानदार होने का अहसास करा रहा है तो अजय चँद्राकर का यह रुख अपने पक्ष में हजारों –लाखों हाथों को भी साथ खड़े होने का न्यौता देता हुआ दिखाई देता है। यह व्यक्ति के रूप में अजय चंद्राकर का समर्थन नहीं , बल्कि उनके स व्यवहार-वर्ताव का समर्थन होगा , जिसके बारें में खुद अजय चँद्राकर मीडिया में कहते हैं कि – “यह तो ईश्वर की देन है……।“ इस घटनाक्रम को देखने का एक नजरिया यह भी है कि पूरा तंत्र रोजाना कितने आम लोगों पर शासन चलाते हुए उनके साथ बदसलूकी करता है…….। तब कौन रोक पाता है…? सेवक खुद अपने मालिक को अपनी मुट्ठी में कैद करने की कवायद में लगा रहता है…….। तब कौन उसे रोक पाता है ? नीति-नियमों के पालन की दुहाई देने वाला तंत्र  खुद इन नीति-नियमों का पालन कितना कर पाता है…?

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जिस दौर में लोगों को यह कहने से गुरेज नहीं है कि – “बिना जेब गरम किए कोई काम होता नहीं …..।“ लेट-लतीफी, मनमानी के बीच पनप रहे भ्रष्टाचार से लोग दुखी और तंग हैं…..। ऐसे में तंत्र को सुधारने के लिए – “सठे साठ्यम् समाचरेत् “ का रवैया अपनाते हुए अगर कोई अजय चँद्राकर उठ खड़ा हो तो इतनी हाय- तौबा क्यों….?  हाय-तौबा मचाने वालों से कोई भी पूछ सकता है कि जब तक गलत को गलत कहने का साहस नहीं होगा – तब तक उस गलत काम को भला कैसे रोका जा सकेगा  ..? हर किसी को अपनी जिम्मेदारी जवाबदारी का अहसास कराने के लिए पहले बोलना तो पड़ेगा। सभी चाहते हैं कि  व्यवस्था में सुधार हो और मंत्री-एमएलए अजय चँद्राकर के जैसा चाहिए …….तो फिर अजय चँद्राकर की तरह बोलने- करने वालों के साथ सभी का हाथ क्यों नजर नहीं आता…..? वक्त की आवाज कोई सुने तो साफ समझ सकता है कि ऐसे नुमाइंदे के साथ आमजन खुद खड़े हो।ना पड़ेगा । तभी कुछ बात बन सकती है। आम लोगों के मन के भीतर उठ रहे गुबार को किसी ने तो सामने लाया…। और ऐसे शख्स ने सामने लाया जो जो खुद भी जिम्मेदार पद पर है। भले ही विपक्ष की आवाज यह कहकर अनसुनी कर दी जाती है कि – “विरोध के लिए विरोध हो रहा है।“ लेकिन सरकार में बैठा मंत्री कहे फिर भी हमें कुछ सुनाई न दे तो कान का डॉक्टरी परीक्षण जरूरी नजर आता है। हां…… अगर प्रशासन तँत्र में कहीं कोई खोट नहीं है……. सब बढ़िया चल रहा है …… तब तो फिर अजय चँद्राकर का रवैया सही नहीं है…….।

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