पेंड्रा(शरद अग्रवाल)।छत्तीसगढ़ और हिंदी की पत्रकारिता जगत में प्रथम और विशिष्ट स्थान रखने वाले स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे की आज 26 अप्रेल को 91वीं पुण्यतिथि थी जहां प्रदेश सहित देश के कुछेक शहरों में सप्रे जी की पुण्यतिथि की औपचारिकतांए निभायीं गयीं तो वहीं उनकी कर्मभूमि पेंड्रा जहां से हिंदी पत्रकारिता की बुनियाद रखते हुये 116 साल पहले सन 1900 में न केवल छत्तीसगढ़ राज्य के नाम को अक्षरीजामा पहनाया वरन छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिका का प्रकाशन अभावों के बीच ही सही पर शुरूआत किया था उसी पेंड्रा इलाके में आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको लोगों ने याद तक नहीं किया और न ही कहीं पर कोई समारोह या कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। प्रख्यात समाजसेवी, विचारक और शिखर शिक्षा के नायक सप्रे जी आजादी पूर्व की उस पीढ़ी से थे, जिनके लिए कथनी और करनी में कोई भेद नहीं होता था। तब देश अंग्रेजों का गुलाम था। गुलामी की यह जंजीरें सिर्फ शासन तंत्र के पाँवों पर ही नहीं थी, बल्कि अज्ञानता, कुरीतियों और अंधविष्वासों की बेडि़यों ने भी समाज को सदियों से जकड़ रखा था। इसी दौर में सप्रे जी ने छत्तीसगढ़ को चुना और लोकजागरण के लिए खुद को झोंक दिया।
माधवराव सप्रे (19जून 1871 – 26 अप्रैल 1926) का जन्म दमोह के पथरिया ग्राम में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मेट्रिक रायपुर से पास किया। 1899 में कलकत्ता विष्वविद्यालय से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रुप में शासकीय नौकरी मिली जरूर पर उन्होने भी देश भक्ति प्रदर्षित करते हए अँग्रेजों की शासकीय नौकरी की परवाह न की। सप्रे जी 1899 में छत्तीसगढ़ के पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक बने। उन्होने यहीं से सन् 1900 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का संपादन षुरू किया। उनकी यह पत्रिका देशभर में प्रसिद्ध हो गयी। इसका प्रकाशन सन् 1902 तक चलता रहा। उस दौर में ख्याति तो बहुत मिली, लेकिन तब विज्ञापन देने का रिवाज नहीं था। लागत, वितरण के भी खर्चे बढ़ने लगे। पहले वर्ष में छत्तीसगढ़ मित्र को 175 रुपए और दूसरे वर्श 118 रुपए का घाटा उठाना पड़ा। इस क्षति के एवज में भरसक सहयोग की माँग की जाती रही। लेकिन घाटा बरकरार रहा।
लिहाजा छत्तीसगढ़ मित्र बंद हो गया। पेंड्रा के जिस राजमहल में सप्रे जी रोजाना जाकर तत्कालीन राजकुमार को अंग्रेजी का अध्यापन कराया करते थे वहां आज तक श्री सप्रे जी की यादों को संजोने के लिये कोई भी स्मृतिचिन्ह मौजूद नहीं हैं तो वहीं जिस घर में वह रहा करते थे वह सामान्य सी दुकान बन गया है। स्थानीय प्रेस क्लब के द्वारा सप्रे जी की यादों को संवारने के लिये पत्रकार भवन सह वाचनालय की मांग कई दफा प्रदेश सरकार से किया पर एक ढेला भी सरकार की ओर से अब तक नहीं मिल सका जबकि समय समय पर सरकारी नुमाईंदों और जनप्रतिनिधियों ने सप्रे जी के नाम पर झूठी घोशणांए कर तालियां जरूर बटोरी पर आज तक एक ईंट भी सप्रे जी के भवन के नाम पर रखी नहीं जा सकी है।
करीब सात साल पहले प्रदेश सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जब चुनाव के पहले विकासयात्रा लेकर यहां पहुंचे तो उन्होने हाईस्कूल के मैदान पर पत्रकार भवन के लिये पांच लाख देने की घोशणा कर तालियां बटोंरी, इसके बाद बिलासपुर जिले के तत्कालीन प्रभारी मंत्री हेमचंद यादव ने भी चार साल पहले प्रभारी मंत्री मद से माधवराव सप्रे की स्मृति में पत्रकार भवन के लिये पांच लाख रूपये देने की घोषणा किया नगर पंचायत से पत्राचार भी हुआ पर आज तक वह पैसा भी नहीं आया। इसके अलावा दो साल पहले केन्द्रीय कृषी मंत्री चरणदास महंत ने भी मरवाही दौरे के दौरान कुछ ऐसी ही घोशणा किया पर उनकी राशि भी अब तक नहीं मिली। मुख्यमंत्री जितनी बार आए उनसे स्थानीय पत्रकारों ने माधवराव सप्रे लायब्रेरी और पत्रकार भवन की मांग किया जिस पर भी मौखिक आश्वासन दिया गया।
हाल ही में पिछले महीने प्रेस क्लब पेंड्रा के सचिव ने मुख्यमंत्री जनदर्शन में आॅनलाईन मांग पत्र सौंपकर माधवराव सप्रे जी की स्मृतियों को संवारने के लिये आदमकद प्रतिमा तथा पत्रकार भवन की मांग किया जिसे भी वहां से आवेदन को बिलासपुर कलेक्टर को फारवर्ड कर दिया गया जो कि आज तक लंबित है। वहीं मरवाही के पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी अपने कार्यकाल में जहां सप्रे जी की यादों को पेंड्रा में संजोने के लिये कोई पहल नहीं किया। वहीं नगर पंचायत पेंड्रा के द्वारा एक दशक पहले माधवराव सप्रे वाचनालय भवन तो शुरू किया पर चंद सालों में ही यह लायब्रेरी बंद हो गयी और अब भवन भी जर्जर होते जा रहा है और अब इसको षुरू करने का कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा है। इस प्रकार सरकार और जनप्रतिनिधियों के द्वारा सप्रे जी की कर्मभूमि पेंड्रा में उनकी स्मृतियों को संजोने संवारने के लिये सिर्फ और सिर्फ मजाक ही किया है यह कहना जरा भी गलत नहीं होगा।