0धूल धक्कड और मच्छरों से जन्म-जन्मान्तर का नाता है बिलासपुर का
(शशिकांत कोन्हेर) बिलासपुर-कोई अगर, बिलासपुर वालों से यह सवाल प्रश्न करे कि अलग छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद बिलासपुर को आखिर क्या मिला? तो इस सवाल का सीधा-साधा और गवंईंहा सा जवाब शायद यही होगा कि, अलग राज्य बनने से इस शहर को अगर कुछ मिला है तो वह है, धूल-धक्कड और गर्दोगुबार वहीं बारहमासी धूलपंचमी का त्यौहार और मच्छरों का उपहार..!
छत्तीसगढ राज्य बनते ही बिलासपुर में एक बार जो तोडफोड और उखाड-पछाड की ठेकेदारी शुरू हुई । उसने ही बिलासपुर को बारहमासी धूलपंचमी का मुकम्मिल वरदान दे दिया । अब तो यहां रहने वाले लोग साल भर ,सुबह से शाम तक धूल पंचमी मना रहे हैं । मना क्या रहे हैं, मनाने पर मजबूर कर दिये गये हैं ..। अब तो हालत यह है कि शहर में दीवाली हो, दशहरा हो …. नये साल का जश्न हो, ईद या मिलादुन्नबी और सावन के सोमवार हों, लेकिन, इन सारे त्यौहारों के साथ ,धूलपंचमी का तडका, जरूर रहा करता है । यहां तैनात अधिकारियों को मानों साफ निर्देश हैं कि बिलासपुर में कभी भी धूल-धक्कड़ की कमी नही होनी चाहिये और, जहां कहीं भी धूल-धक्कड या सडकों का गर्दोगुबार कम होते दिखता है, वहां नये सिरे से गडढे खोदकर धूल धक्कड की आपूर्ति शुरू कर दी जाय । शहर को इससे जितना ही मुक्त करने की बात उठती है, उतना ही यहां गर्दोगुबार बढ़ता चला जाता है ………मर्ज बढता गया, ज्यों-ज्यों दवा की ।
कुछ बरस पहले पहले तक शहर में ठेकेदार अलग हुआ करते थे और नेता अलग । वहीं अफसर , अपनी ही अफसरी में मशगूल …..। लेकिन सात-आठ सालों से इन तीनों को बांटने वाली विभाजन की महीन सी लकीर मिट चुकी है । अब ठेकेदार के शरीर में नेता और नेता के शरीर में ठेेकेदार की आत्मा निवास करने लगी है । वार्डों में तो हालत यह है कि कौन नेता है, और कौन पार्षद या ठेकेदार ? यह समझना ही मुश्किल हो गया है । शायद अब ठेकेदारी ही बिलासपुर का धर्म बन गया है । और यहां हर कहीं नाली-नाला निर्माण, सडक निर्माण और सीवरेज के बहाने शहर की सडकों पर धूल-धक्कड उडाने की खुली छूट सी मिली हुई है । शहर के गली मोहल्लों में सैकडों कोकड़े और पोकलैण्ड इसके लिये सक्रिय कर दिये गये हैं । ऐसा लगता है कि यह गर्दोगुबार, बिलासपुर की किस्मत के साथ ही बांध दिया गया है ़ चालीस साल पहले भी तोरवा से सिम्स चौक तक भूमिगत नाली की आड में बडे-बडे गड्ढे कर सालो-साल खूब धूल उडाई गई ….।तब भी, यही बताया गया कि इस योजना से बिलासपुर में इंसानों का मल-जल सीधे तोरवा के उस पार जाया जायेगा ़ फिर इस योजना का क्या हुआ न किसी ने पूछा और न किसी ने बताया ़उसके बाद आये सत्ता के नये ताहुतदारों ने रोजमेरी प्रोजेक्ट का नारा देकर शुरू कर दी, जवाली नाले की खुदाई ़ और फिर उडने लगी धूल-धक्कड ़ ़बिलासा दाई की नगरी में अब तक जितना नाली निर्माण हुआ है, यदि उसे एक सीध में किया जाता तो यहां से न्यूयार्क और जिनेवा तक लम्बी नाली खुद चुकी होती ़फिर आया सन ् 2001 ़ छत्तीसगढ अलग राज्य हो गया ़ और इसके साथ ही शुरू हुई निर्माण व जीर्णोध्दार की उठापटक ने
शहर के धूल-धक्कड मुक्त होने की सारी उम्मीदें खत्म कर दीं ़ वहीं सन् 2007 में शहर को धूल-धुसरित करने की एक नई बवण्डरी परियोजना, सीवरेज मिल गई ़अब इसका काम या तो ठप्प हो जायेगा या इसके मालिक नौकर नौ, दो, ग्यारह हो जायेंगे ़़ लेकिन जाते-जाते शहर को गर्दोगुबार की ऐसी सौगात दे जायेंगे जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेगी ़ वहीं हुक्मरानों ने आने वाले बरसों के लिये पहले ही अरपा परियोजना और स्मार्ट सिटी के नाम से शहर पर गर्दोगुबार की बारिश करने के नये-नवेले प्रोजेक्ट सरकार से मंजूर करा लिये हैं ़ अब आगे बीस साल और फुरसत है ़ तब तक बिलासपुर के गली मोहल्लों-चौक चौराहों को , न तो गडढों की कोई कमी होगी और न धूल-धक्कड़ की ़ एक बार अरपा परियोजना और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को शुरू भर होने भर दें ,फिर देखिये उनके गर्दोगुबार के आगे ,सीवरेज की धूल भी फीकी पड जायेगी फिर आप फुरसत से सालों साल, सुबह शाम मनाते रहिये, धूल पंचमी ़ ़ और धूल-धक्कड से लबरेज ़ ़ ़ एक दूसरे का चेहरा देखकर गाते रहिये ़ ़ ़ धूल भरे अति शोभित श्याम जू ़ ़, कैसी बनी यह सुंदर चोटी ़ ़ ़ ़ ़