वीरगांव निगम पर खतरे का बादल

Editor
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high_court_visualबिलासपुर–बीरगांव नगर निगम पर भंग होने का खतरा मंडराने लगा है। हाईकोर्ट ने 15 दिन के भीतर सभापति का चुनाव नहीं होने के एक मामले की सुनवाई करते हुए बुधवार को राज्य शासन को यह निर्देश दिए कि बीरगांव नगर निगम पर निगम एक्ट की धारा 422 के तहत कार्रवाई करे। इस धारा के तहत निर्वाचित नगर निगम को भंग करने का प्रावधान है।

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                          हालांकि इसी धारा के तहत भंग करने से पहले निगम का पक्ष सुनने का प्रावधान भी है। दरअसल बीरगांव महापौर पद की कांग्रेस प्रत्याशी डाक्टर सुनीता देवांगन ने पिछले दिनों हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था, कि कानून के अंतर्गत किसी भी नगर निगम में महापौर और पार्षदों के निर्वाचन के 15 दिनों के भीतर सभापति की नियुक्ति भी की जानी है।

                            बीरगांव में 23 नवंबर को महापौर और पार्षदों का निर्वाचन हुआ।  लेकिन 15 दिन में सभापति का चुनाव नहीं हुआ। याचिका पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन से जवाब मांगा था। शासन ने बताया कि एक पार्षद का परिणाम स्टे होने के कारण सभापति का चुनाव नहीं कराया जा रहा है।

                       मामले की बुधवार को फिर सुनवाई हुई और डाक्टर सुनीता देवांगन के वकील मतीन सिद्दीकी ने शासन के जवाब पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यदि एक पार्षद का परिणाम स्टे है, तब भी सभापति 15 दिन में नियुक्त होना जरूरी है। इसके बाद जस्टिस प्रशांत मिश्रा की सिंगल बेंच ने राज्य शासन को आदेश दिए कि धारा 422 के तहत कार्रवाई करें।

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