रेल टिकट से महंगा…स्टैण्ड किराया

BHASKAR MISHRA
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railwaal_picasa- Copyबिलासपुर–रेलवे स्टैण्ड में स्टैण्ड संचालको की मनमानी लोगो की परेशानी का कारण बन गया है। पहले एक दिन का दो पहियां वाहनों का किराया  5 रूपये था अब पन्द्रह रुपए देना पड़ रहा है।  रोजाना रेल सफर करने वालों में इसे लेकर भारी नाराजगी है। लोगो की माने तो स्टैण्ड किराया रेलवे किराया से भारी हो गया है।

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बिलासपुर से रोज रेल सफर करने वालों को रेल किराया ने नहीं स्टैण्ड किराया भारी पड़ने लगा है। 9 अक्टूबर 2015 से प्रभावी नियम के अनुसार  लोगो को अब अपनी मोटर सायकल के लिए स्टैण्ड किराया प्रतिदिन बीस से तीस रूपया देना होगा। जबकि पहले केवल पांच रूपए देना होता था। रेलवे स्टैण्ड में हुई अचानक किराया बढ़ोत्तरी से लोगो का बजट बिगड़ने लगा है। जाहिर सी बात है कि नाराजगी सामने आएगी ही।

रेल से रोज सफर करने वाले एक यात्री ने बताया कि वह रायपुर में एक निजी कम्पनी का कर्मचारी है। रोज लोकल से बिलासपुर से रायपुर आना-जाना करता है। उसने बताया कि रायपुर से ज्यादा भाड़ा तो स्टैण्ड चालक को देना पडता है। कई बार लेट हो जाए तो गाड़ी छुड़ाने के लिए स्टैण्ड संचालक को चालिस रूपये देना पड़ता है।

एक अन्य यात्री ने बताया कि वह लाल खदान से रेलवे स्टेशन निजी वाहन से आता है। स्टैण्ड में गाड़ी खड़ी कर नौकरी करने रेल से यात्रा करता है। उसके पास टैक्सी का किराया देने के लिए पैसे नहीं है। इसलिए पांच रूपए देकर गाड़ी स्टैण्ड में खड़ा कर देता हूं। लेकिन एक मोटर सायकल का 25 से 30 रूपए किराया  नहीं दे सकते हैं। इससे तो अच्छा आटो है। लेकिन रात्रि में लौटते समय आटोचालक दो सौ रूपए मांगते हैं। अब स्टैण्ड में पार्किंग महंगी पड़ने लगी है। स्टैण्ड चालको ने जिस तरह भाड़ा बढ़ाया है इससे उनकी आर्थिक स्थित बिगड़ गयी है। मंहगाई आसमान छू रही है। स्टैण्ड किराया तीन गुना हो गया है। ऐसे में हम जैसे लोगों का जीना मुश्किल जाएगा।

                        मालूम हो कि स्टैण्ड संचालक की मनमानी समय समय पर सामने आती ही रहती है। स्टैण्ड संचालक रेल प्रशासन की भी बातों को एक सिरे से नकार देता है। निर्देश के बाद भी रेल निर्देशों का पालन भी नहीं करता है। कुछ समय पहले स्टैण्ड से ही एक युवक को गिरफ्तार किया गया था। जो बिहार में हत्या का आरोपी था। वाहन मालिक जब भी संचालक से स्टैण्ड किराया के बारे में जानकारी चाहते हैं तो वह धमकी देने लगता है। यात्रियों को इतनी फुर्सत नहीं रहती कि इस झमेले में पड़े। लेकिन रेल प्रशासन भी सब कुछ जानते हुए मौन है। यह समझ से परे है।

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