बिलासपुर—वुद्धिमान इँसान वर्तमान को जीता है। देखने में आ रहा है कि आज हर इंसान भूत को पकड़कर भविष्य की चिंता में डूबा है। इसलिए उसका वर्तमान बिगड़ रहा है। जो वर्तमान को जीता है वह अपना जन्म सार्थक बनाता है। भूत और भविष्य के चक्कर में हम वर्तमान को खो रहे हैं। ऐसा करने वाले अच्छे कर्मों से चूक रहे हैं। गलत रास्ते पर चल पड़े हैं। जो बाद में हमें प्रारब्ध के रूप में मिलता है। यह बातें रूद्राभिषेक के बाद परमहंस स्वामी शारदानन्द जी सरस्वती महाराज जी ने विनोबानगर स्थित बृजेश अग्रवाल के निवास पर भक्तों को आशीर्वचन के दौरान कही।
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स्वामी जी ने कहा जो होना है वह होकर रहेगा। भविष्य में आने-वाले घटनाक्रम को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है। जो बीत गया, उससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। वर्तमान में जो व्यवस्था है उसी के अनुरूप हमें भगवान के चरणों में सतकर्म करते हुए व्यवस्था अनुकूल आगे बढ़ना है। स्वामी जी ने कहा सतयुग में राजा नल,त्रेता में भगवान राम और द्वापर में युधिष्ठिर को कष्टों के पहाड़ से गुजरना पड़ा है। क्योंकि यह होना था। लेकिन उन्होने कभी वर्तमान से मुंह मोड़कर भविष्य या भूत के चक्कर में अपने को नहीं झोंका। उन्होंने वर्तमान को जीते हुए महात्म्य को प्राप्त किया। ऐसा सभी को करना चाहिए। धैर्य को पकड़कर आगे बढ़ना है। इसी में जीवन की सार्थकता निहीत है।
आज मनुष्य अपने दुख से कम दूसरे के सुख से ज्यादा दुखी है। दुख का कराण भी वर्तमान में ही छिपा है। उसके पास हमसे ज्यादा क्यों के भाव ने इंसान को कुपथगामी बना दिया है। यदि इंसान वर्तमान में हासिल व्यवस्था के अनुरूप अपनी जिन्दगी को ढालते हुए परमात्मा के चरणों में कुछ समय अर्पित करे तो उसका भाग्य बदलना तय है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। महाराज ने बताया कि सुख- दुख का मूल कारण प्रारब्ध से है। जो हम आज करेंगे। भविष्य में हमें वहीं मिलेगा।
महाराज सरस्वती ने कहा कि आडम्बर दुख का सबसे बड़ा कारण है। वेद,पुराण,गीता,उपनिषद का ज्ञान कोई महत्व नहीं रखता..जब तक उसे हम अपने आचरण में नहीं ढालते हैं। उन्होने कहा आस्था को जिव्हा तक सीमित नहीं रखते हुए आचरण में ढालने की जरूरत है। जब तक आचरण ठीक नहीं होगा हम दुख के भंवर में फंसे रहेंगे। इससे ना केवल वर्तमान बल्कि भविष्य भी दुष्प्रभावित होगा।
शारदानन्द जी महाराज ने भक्तों से बताया कि बिना भय के बिना प्रीत नहीं होती। जिसके मन में भय नहीं है उसका कुपथगामी होना तय है। जिसे भय है वह गलत रास्ते पर जा ही नहीं सकता । उन्होंने कहा कि आज जो भी गलतियां हो रही है उसका मूल कारण भय का नहीं होना है। लोग स्वच्छन्द और अनुशासनहीन हो गए हैं। उन्हें ना तो भगवान का भय है और ना ही कानून या राजा का। महाराज जी ने कहा अब तो लोगों में कुल का भी भय नहीं है। महाराज जी ने बताया कि अब तो आत्मभय भी लोगों के मन से गायब हो गया है। जिसके कारण आज हमारा मानव समाज पतन की ओर तेजी से बढ रहा है। लोगों में नीर क्षीर का विवेक भी खत्म हो चुका है। जब भय ही नहीं होगा तो समाज की दिशा और दशा का बिगड़ना निश्चित है।
महाराज जी ने प्रजातंत्रिक प्रणाली पर चोट करते हुए कहा कि आज का इंसान वाचाल और उद्दण्ड हो गया है। सबकी अपनी ढपली और अपना राग है। कोई किसी को सुनना नहीं चाहता। कोई किसी को सुनने को तैयार भी नहीं है। लोगों के मन से भय नाम की चीज जो नहीं रह गयी है। भगवान,कानून,कुल और आत्म भय खत्म होने से लोग उद्दण्ड हो गए हैं। इसके लिए हमारे अग्रज जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि गीता में लिखा है कि जब हमारे मार्गदर्शक और ब़ड़े लोग की गलत होंगे तो अनुयायियों का गलत होना स्वभाविक है।
हमारे नेता,साधु संत,माता पिता, शिक्षक, तथाकथित विद्वान इन लोगों ने ही समाज को दुष्प्रभावित किया है। जिसका नतीजा आज सबके सामने है। महाराज ने कहा कि जब टाइटल या लेख की प्रूफिंग गलत होगी तो पाठक और आने वाली पीढ़ी भी गलत तैयार होगी। इसलिए हमें भूत और भविष्य की चिंता से परे वर्तमान को कुछ इस तरह तैयार करना होगा कि सामाजिक तानाबाना पवित्र और सुपथगामी हो। साथ ही हमारा प्रारब्ध भी उज्जवल हो।
स्वामी जी ने कहा कि भारत भूमि पर जन्म लेना और मानव तन पाना अपने आप में धन्य है। लेकिन हम आज तक उसके महत्व को नहीं समझे। उन्होंने कहा कि मनुष्य की आत्मा कुंठित हो चुकी है। जानवरों जैसा व्यवहार करने लगा है। हर तरफ अराजता का माहौल है। लोग त्राहि त्राहि कर रहे हैं। बावजूद इसके संयम की पटरी पर चलने को तैयार नहीं है। उन्होने बताया कि जब तक हम बुद्धि से खुद को संयमित नहीं करेंगे। तब तक जीवन की गाड़ी बेपटरी रहेगी। जो केवल और केवल विनाश का रास्ता है ।