बिलासपुर— अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह-चीन्ह के देय…अजीब है…यह कहावत नगर निगम पर सटीक बैठती है। नगर निगम की एक आंख पहले से ही खराब थी । अब दोनो खराब हो गयी हैं। मुखिया पहचान पहचान कर रेवड़ी बांट रहा है। सीजी वाल ने अपने पहली कड़ी में पाठकों को बताया है कि निगम की आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपय्या है।
निगम की सालाना कमाई जब 26 करोड़ रूपए है। लेकिन खर्च 70 करोड़ रूपए करता है। 70 करोड़ रूपए में से 14 करोड़ रूएए साफ सफाई पर खर्च होते हैं। इसमें 350 कर्मचारियों के तीन करोड़ वेतन भी शामिल है। बावजूद इसके निगम कर्मचारियों को वेतन देने में फिसड्डी है। आखिर क्यों। इसका सीधा अर्थ है.. कि निगम में चरमोत्कर्ष पर भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। सरकार से मिले भीख का पैसा भी साफ सफाई व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए नाकाफी हैं।
निगम में कुल 66 वार्ड हैं। साफ सफाई का बजट 55 वार्ड के अनुसार तय होता है। इससे कुछ फर्क नहीं पडता..क्योंकि क्षेत्र उतना ही है जितना पहले था। लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि शहर के सभी 66 वार्डों में प्रत्येक वार्ड पर साफ सफाई में 22 लाख रूपए खर्च होते हैं। इनमें से रेलवे के वार्डों को यदि घटा दिया जाए तो यह आंकड़ा बदल जाता है। लेकिन ठेकेदारों को सुपुर्द मात्र 27 वार्डों में साफ सफाई पर सालाना खर्च 25 लाख रूपए होते हैं।
निगम में साफ सफाई व्यवस्था का संचालन दो तरीके होता है। 21 वार्डों की सफाई व्यवस्था निगम के हाथों में है। 27 वार्र्डों की सफाई जिम्मा ठेकेदारों के सिर पर है। निगम 27 वार्डों के लिए ठेकेदारों को साल में सात करोड़ रूपए देती है। मतलब एक वार्ड पर साल भर में ठेकेदारों को साफ सफाई पर 25 लाख रूपए खर्च करना होता हैं। मतलब एक दिन में एक वार्ड की साफ सफाई पर दो लाख खर्च होते हैं। बावजूद इसके शहर का कोई ऐसा वार्ड नहीं है जिसे सफाई को लेकर आदर्श वार्ड घोषित किया जा सके। हर गली , हर सड़क ,हर चौक और हर चौराहों पर गंदगी का पहाड़ मुंह राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान का मुंह चिढ़ाता है।
शर्तों के अनुसार 27 वार्डों में सफाई ठेकेदार अपना मजदूर,कचरा वाहन,पेट्रोल या डीजल का प्रयोग करेंगे। लेकिन यहां खेल उल्टा है। ठेकेदार को सिर्फ ठेका ही लेना होता है। हाइवा, ट्रक, पेट्रोल, सफाई कर्मचारी पिछले दरवाजे से निगम के होते हैं। कहने का मतलब है कि 27 वार्डों में काम करने वाले किसी भी ठेकेदार के पास ना तो मजदूर है…ना हीं गाड़ी है..ईंधन लगने का सवाल ही नहीं। सोचने वाली बात है कि ठेकेदारों को सात करोड़ रूपए सालाना दिए क्यों जा रहे हैं।
कुछ नाखुश कर्मचारियों ने बताया कि निगम में ऊपरी स्तर के कर्मचारी सब जानकर अंजान हैं। मतलब सात करोंड़ रूपए का बंदरबांट ठेकेदार के नाम पर निगम के कर्मचारी करते हैं। जाहिर सी बात है कि निगम अपने 21 वार्डों के अलावा 27 वार्डों की सफाई पिछले दरवाजे से करवाता है। इसकी जानकारी आयुक्त को नहीं है.ऐसा नहीं कहा जा सकता है।
निगम के एक तेज तर्रार पार्षद ने बताया कि बिलासपुर निगम का कामकाज अधिकारियों के निर्देश पर कम ठेकेदारों के हिसाब से ज्यादा चलता है। जनप्रतिनिधियों की कोई पूछ परख नहीं है। आयुक्त किसी की सुनती नहीं है। 27 वार्डों में सप्ताह में दो एक दिन जो सफाई अभियान चलता भी है..तो अन्य वार्डों के सरकारी सफाई कर्मचारी ही पूरा करते हैं। विरोध होने या मंत्री के आगमन पर आयुक्त के निर्देश पर सरकारी सफाईकर्मियों को उन वार्डों में झोंक दिया जाता है।
जाहिर सी बात है कि निगम में साफ सफाई अभियान के बजट में जमकर लूटपाट हो रही है। इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को नहीं है। नगर की सफाई व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है। ठेकेदार सात करोड़ रूपए कहां खर्च करता है। इसे बताने की जरूरत नहीं है। लोग ठीक ही कहते हैं कि खेत ही मेड़ निगलने लगे तो किसान का मालिक भगवान ही है।