बिलासपुर— बिलासपुर वासियों में प्रशासन के प्रति विश्वास की भारी कमी है। इसलिए स्मार्ट सिटी की अवधारणा को लेकर सकारात्मक सोच नहीं रखते हैं। निगम और जिला प्रशासन को विश्वास हासिल करने लिए कुछ करके दिखाना होगा। जैसे रिवर व्यू को कर दिखाया। प्रशासन को किसी क्षेत्र विशेष या फिर यातायात व्यवस्था को दुरूस्त कर स्मार्ट सिटी की झलक दिखाना होगा। इसके बाद जनता आगे बढ़कर स्मार्ट सिटी का इस्तकबाल करेगी। जनता के पास बहुत कड़वे अनुभव हैं। मेरा मानना है कि उन्हीं कड़वे अनुभवों के दम पर स्मार्ट सिटी बनेगा। स्मार्ट सिटी परियोजना में स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूर होगी।
जब भी नई योजनाएं सामने आती है..उसकी सफलता को लेकर संशकित होना स्वभाविक है। ऐसा पुराने अनुभवों के कारण होता है। स्मार्ट सिटी को लेकर भी ऐसा ही कुछ है। लोगों ने इसे भी सिवरेज से जोड़कर देखना शुरू कर दिया है। विकास के साथ संतोष और असंतोष दोनो जुड़े हैं। हमें तय करना है कि दीर्घकालिक सुख ज्यादा महत्वपूर्ण है या फिर अल्पकालिक मुसीबतों से घबराकर विकास के रास्ते से हट जाना। ऐसा हमेशा होता है। जब बातचीत होती है तो सब कुछ आइने की तरह साफ हो जाता है। जनता विकास के रास्ते पर चल पड़ती है। यह बातें लघु एवं कुटीर उद्योग के प्रदेश अध्यक्ष हरीश केडिया ने सीजी वाल से एक मुलाकात में कही।
हरीश केडिया ने सीजी वाल को बताया कि पूर्व से ही निगम की कार्यप्रणाली से जनता में गहरा अविश्वास है। इस अविश्वास पर विश्वास का मुहर लगाना होगा। स्मार्ट सिटी के महत्व को समझाना होगा। प्रयास किया भी जा रहा है। जनता समझने लगी है…कि स्मार्ट सिटी के बहाने बिलासपुर का चहुंमुखी विकास होगा।
हरीश केडिया ने बताया कि विकास की अवधारणा के साथ सुविधा और संकट दोनों का नाता है। पेड़ कटते हैं तो सड़क भी बनता है। अनाप शनाप पैसे आते हैं। गलत रास्ते भी निकल आते हैं। अराजकता का माहौल बन जाता है। स्मार्ट सिटी योजना में ऐसी स्थिति उत्पन्न ना हो। सम्यक बदलाव के साथ आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि हम अपने तक सिमट कर रह गये हैं। इस सोच से बाहर निकलने की जरूरत है। लोगों को घर साफ रखने की अच्छी आदत है….लेकिन भीतर का कचरा सड़क पर फेकना ठीक नहीं। आपकी सुविधा दूसरों के लिए असुविधा बन रही है…किसी को मतलब नहीं है। ऐसे कल्चर को बदलने की जरूरत है। स्मार्ट सिटी इस कल्चर को बदलकर रहेगा। बदलाव दिखने लगा है। अब हम सुविधाभोगी के साथ कर्मयोगी भी बनेंगे। देखिये इन दिनों…लालबत्ती का पालन होने लगा है। दो चार बार नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगेगा..बचे खुचे लोग भी रास्ते पर आ जाएंगे। आखिर…नियम और विकास किसी एक के लिए तो नहीं है।
देखने में आ रहा है कि कुछ लोग विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं। इन्ही में से कुछ लोगों स्मार्ट सिटी को लेकर लार टपकने लगी है। दावा करता हूं..ऐसे लोग इस अभियान का अँग हो ही नहीं सकते। स्मार्ट सिटी अभियान को परवान चढ़ाने के लिए निगम का एक अंग मामले को देखेगा। वर्तमान व्यवस्था में कोई योग्य व्यक्ति नहीं है। जो स्मार्ट सिटी अंजाम तक पहुंचाए। टीम में जानकारों को रखा जाएगा। इसमें प्रायवेट और सरकारी दोनों ही क्षेत्र के जानकार शामिल होंगे। टीम में मास्टर माइंट इंजीनियर, स्थानीय प्रतिनिधि और दूर दृष्टि रखने वालों को तरजीह दी जाएगी। समर्पित प्रशासक की देखरेख में काम होगा। व्यवस्था कुछ ऐसी होगी कि आने जाने वालों का योजना पर विपरीत प्रभाव ना पड़े।
केडिया ने बताया कि स्मार्ट सिटी योजना में लेट लतीफी का कोई स्थान नहीं होगा। फायनेंसियल पीरियड में काम करके दिखाना होगा। स्मार्ट सिटी योजना में 90 प्रतिशत केन्द्र का पैसा लगेगा। तय समय में काम नहीं होने पर बजट लैप्स हो जाएगा। इसलिए लोगों की मजबूरी होगी कि काम करें। यदि ऐसा नहीं होगा तो जनता परेशान होगी…प्रशासन का भद्द भी पिटेगा।
जैसा कि अभी तक लिया गया है कि साडा और स्मार्ट सिटी योजना मिलकर काम करेगी। कमोबेश सभी का मानना है कि अरपा क्षेत्र में स्मार्ट सिटी बसाया जाए। साथ ही ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का पुरनोद्धार भी किया जाए। पहले चरण में जूना बिलासपुर,गांधी चौक क्षेत्र, गोलबाजार क्षेत्र से लेकर नेहरू चौक तक स्मार्ट सिटी योजना को लागू किया जा सकता है। इसके बाद अरपा विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी योजना अरपा क्षेत्र के आस पास नया बिलासपुर बसाया जाएगा।
वर्तमान में लोगों मे विश्वास का संकट है। लोगों का विश्वास जीतने के लिए प्रशासन को पहले कुछ करना होगा। हरीश केडिया ने सीजी वाल को बताया कि सिर्फ नकारात्मक खबर ही समाचार है। इस सोच को बदलने की जरूरत है। जिले और नगर में सरकार की कई योजनाएं चल रही हैं। अच्छा काम भी हो रहा है। उस पर भी लिखा जाए। पत्रकारों को नकारात्मक खबर की दुनिया से बाहर निकलना होगा। उन्होंने बताया कि इस समय देश में ना तो लोहियावादी है,ना जयप्रकाश के चेले और ना ही गांधी के सच्चे भक्त। यदि ऐसा होता तो देश की सूरत कुछ अलग ही होती।
संतोष को कभी तराजू पर तौलकर नहीं देखा जा सकता है। बेगलूरू और चंडीगढ़ जैसे स्मार्ट शहर के लोग भी संतुष्ट नहीं है। वहां भी लोग हमारी तरह ही परेशान हैं। उनकी परेशानी कुछ अलग हो सकती है और हमारी कुछ अलग। इसकी वजह संतोष का नहीं होना है। केडिया ने कहा कि संतोष का आकलन तराजू पर तौलकर नहीं किया जा सकता ।