सेल्फी…एक सनक !

Shri Mi

selfie_sp(सत्यप्रकाश पाण्डेय) यह दौर दरअसल मोबाइल क्रांति का है। इसने सूचनाओं और संवेदनाओं दोनों को कानों-कान कर दिया है। अब इसके चलते हमारे कान, मुंह, उंगलियां और दिल सब निशाने पर हैं। मुश्किलें इतनी बतायी जा रही हैं कि मोबाइल डराने भी लगे हैं। इसी क्रान्ति ने मौजूदा दौर में ‘सेल्फी’ नाम के लाईलाज बुखार को भी संक्रमण की तरह आम-ओ-ख़ास तक फैलाया है। सेल्फी फीवर से संक्रमित मरीज अब लापरवाहियों के चलते मौत की आगोश में भी समाते जा रहें हैं। अक्सर सेल्फी ज्वर से तपते व्यक्ति की एक तस्वीर यादगार बनकर परिवार के लिए ज़िन्दगी भर का दर्द दे जाती हैं।सेल्फ़ी हमारे सेल्फ मूड की खुली नुमाईश हैं जिसके जरिये हम अक्सर अपनी संवेदनहीनता का परिचय सरे राह-बीच बाजार दे जाते हैं । ख़ुशी का मौक़ा हो या मातम का रुदन, मज़हब की चौखट हो या बिस्तर की सलवटों में सिमटता जिस्म,  सेल्फ़ी हर मौके की चश्मदीद गवाह है । मोबाईल फ़ोन के फ्रंट कैमरे नें कई बार रिश्तों की मिठास में कड़वाहट का ज़हर भी घोला है लेकिन हम किसी भी घटनाक्रम से सबक नही लेते।

                                                        मुझे लगता है सेल्फ़ी सिर्फ एक सनक है, हमारे दिमाग की एक ऐसी उपज जिसमें संवेदनाओं का कोई मोल नही । कई बार तो ये भी लगता है कि बिना सेल्फ़ी के ख़ुशी और मातम के मौके अधूरे हैं । रस्म, रिवाज सा हो गया है सेल्फ़ी का ज्वर । अफ़सोस तब होता है जब सेल्फ़ी का संक्रमित मरीज श्यमशान घाट, सड़क हादसे, भीख लेते-देते, किसी की मदद करता एक सेल्फ़ी उतारता है और बेहद गंभीर भाव से सोशल मीडिया पे उसे पोस्ट कर घटनाक्रम से अवगत कराते हुए मौके पर अपनी मौजूदगी का सबूत पेश करता है । उसे इस बात से बाद में सरोकार होता है कि मरने वाले से उसका क्या रिश्ता है, जिसकी मदद करते हुए हाथ आगे बढ़ाये वो कितना जरूरतमंद है ? सिर्फ एक सेल्फ़ी फिर वाहवाही… हमने फ़लाना मोहल्ले में वृक्षारोपण किया, फ़ला तालाब की सफाई की । वृद्ध आश्रम में दर्जन भर केले बांटे, गरीबों को भण्डारा कराया ।  ऐसे कई मौके हैं जो सेल्फ़ी के जरिये आपके सेल्फिश होने की कहानी कहते हैं पर भ्रम में जीते सेल्फीरियों को लगता है सब ठीक है। दरअसल हकीकत वो नही होती जैसा हम सोचते समझते हैं।

                                                            हम बाज़ार में कहीं भी कभी भी मोबाईल कैमरे के जरिये फोटोग्राफी के शौक को पूरा कर रहें हैं। दुर्भाग्य देखिये इस देश में हर हाथ को काम नहीं पर हाथों हाथ मोबाइल फोन है। हर वर्ग-उम्र के पास संचार क्रान्ति की डिबिया मौजूद हैं जिसके आगे लगी एक आँख हमारी सूरत और सीरत को हूबहू नहीं देखती  पर हमको लगता है हर शॉट परफेक्ट है। वैसे भी सेल्फ सर्विस की सूरत अलग से दिखाई पड़ती हैं । किसी की आधी तो किसी की पूरी जीभ बाहर । होंठ चोंच की तरह आगे को खींचे हुए, अधखुली आँखे और बिना कंघी के संवरें बाल । वाह क्या खूबसूरत तस्वीर… अब तो सेल्फ़ी पीड़ितों के लिए बाज़ार में दो हाथ लंबी छड़ी भी उपलब्ध है जिस पर मोबाइल लटकाकर लटके-झटके के साथ खींचे हुए चेहरे की एक क्लिक…।
सेल्फ़ी के दौर में सेल्फिश हुये इंसान ने रिश्तों को महज़ एक तस्वीर में समेटने की कोशिश की है । हम हर मौके पर एक ग्रुप सेल्फ़ी के बाद सेल्फ डिपेंड नज़र आते है । कई मायनों में सेल्फ़ी की भूमिका आजीवन यादगार बनकर रह जाती है तो कई बार एक सेल्फ़ी यादगार तस्वीर के रूप में हम पर हार चढ़वा देती है । अक्सर सेल्फ़ी के पागलपन में हमारे हिस्से तस्वीर की शक्ल में सिर्फ मौत आती है । कई घटनाएँ है जो जहन को झकझोर देती हैं पर सबक कितनो को मिलता है ? खोजिएगा तो आंकड़े शून्य।

                                                                मोबाइल फोनों ने किस तरह जिंदगी में जगह बनाई है, वह देखना एक अद्भुत अनुभव है। कैसे कोई चीज जिंदगी की जरूरत बन जाती है- वह मोबाइल के बढ़ते प्रयोगों को देखकर लगता है। वह हमारे होने-जीने में सहायक बन गया है। पुराने लोग बता सकते हैं कि मोबाइल के बिना जिंदगी कैसी रही होगी। आज यही मोबाइल खतरेजान हो गया है। पर क्या मोबाइल के बिना जिंदगी संभव है ? जाहिर है जो इसके इस्तेमाल के आदी हो गए हैं, उनके लिए यह एक बड़ा फैसला होगा। मोबाइल ने एक पूरी पीढ़ी की आदतों उसके जिंदगी के तरीके को प्रभावित किया है।ये फोन आज जरूरत हैं और फैशन भी। नयी पीढ़ी तो अपना सारा संवाद इसी पर कर रही है, उसके होने- जीने और अपनी कहने-सुनने का यही माध्यम है। इसके अलावा नए मोबाइल फोन अनेक सुविधाओं से लैस हैं। वे एक अलग तरह से काम कर रहे हैं और नई पीढी को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। ऐसे में सूचना और संवाद की यह नयी दुनिया मोबाइल फोन ही रच रहे हैं। आज वे संवाद के सबसे सुलभ,सस्ते और उपयोगी साधन साबित हो चुके हैं।

                                                                  मोबाइल फोन जहां खुद में रेडियो, टीवी और सोशल साइट्स के साथ हैं वहीं वे तमाम गेम्स भी साथ रखते हैं। वे दरअसल आपके एकांत के साथी बन चुके हैं। वे एक ऐसा हमसफर बन रहे हैं जो आपके एकांत को भर रहे हैं चुपचाप। कोशिश कीजिये इस जरूरत का जरूरत भर इस्तेमाल करने की साथ ही उसके सामने की आँख [फ्रंट कैमरा] से आँख मिलाते वक्त सावधानी बरती जाए।  आपकी सावधानी ना जाने कितनी जिंदगी की खुशियों का हिस्सा है .. !

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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