लोगों की खुशियों में पुलिस की खुशी-अभिषेक पाठक

BHASKAR MISHRA
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abhishek_pathak(भास्कर मिश्र)बिलासपुर–बिलासपुर जो भी आया….यहीं का होकर रह गया। बिलासपुर ने हर वर्ग को आकर्षित किया है। विविधता ही बिलासपुर की पहचान है।बिलासपुर को यदि खुद्दार शहर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह जन्मजात और सांस्कारिक शहर है।खुद की पहचान को बनाकर वक्त के साथ चलना बिलासपुर की आदतों में है।बिलासपुर को अभी बहुत कुछ पाना है।  जिले को आदिशक्ति का आशीर्वाद हासिल है। यहां आने के बाद समझ में आया कि अन्य प्रदेशों से आया व्यक्ति  बिलासपुर को अपना दूसरा घर क्यों समझता है।बिलासपुर की मिट्टी में समाज सेवकों,सेनानियों और साहित्य विभूतियों ने जन्म लिया है।  सीजी वाल से बातचीत के दौरान यह बांते बिलासपुर पुलिस कप्तान अभिषेक पाठक ने कही। उन्होने सीजी वाल से ना केवल खुलकर अपनी बातों को साझा किया…बल्कि बिलासपुर की विविधता को प्रदेश का सबसे बड़ा धरोहर भी बताया।

             
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सीजी वाल- आईपीएस बनेंगे…ऐसा आपने कब सोचा…स्कूलिंग के समय या स्कूलिंग के बाद...

अभिषेक पाठक–– कम से कम स्कूलिंग के समय तो आईपीएस बनने के बारे में सोचा ही नहीं था। 12 वीं के बाद इंजीनियरिंग के लिए चुना गया। लखनऊ से दुर्गापुर पहुंच गया। पढ़ाई के दौरान साफ्टवेयर कम्पनी में इंजीनियर बन गया। डिग्री हासिल होने तक बात समझ में आ चुकी थी..मेरा रास्ता अलग है। इसके बाद प्रशासनिक सेवा को गंभीरता से लिया। सिविल सेवा की तैयारी की। आईपीएस बन गया।

abhishek3सीजी वाल- बिलासपुर या प्रदेश को जानने का पहला अवसर कब मिला…आईपीएस बनने से पहले या बाद में…

अभिषेक पाठक— आईपीएस में चयन होने के पहले किताबों में ही मैने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को पढ़ा था। लखनऊ से 12 वीं के बाद सीधे दुर्गापुर पश्चिमी बंगाल चला गया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के शहरों के नाम परिचित था। लेकिन दो चार होने का अवसर आईपीएस बनने के बाद हुआ। बिलासपुर अविभाज्य मध्यप्रदेश में ही जाना पहचाना जिला था। 2006 में बिलासपुर कुछ घटों के लिए आना हुआ। समझने का अवसर पांच छ साल बाद मिला। छत्तीसगढ़ विविधताओं का प्रदेश है। बिलासपुर भी कुछ ऐसा ही है। भौगोलिक रूप से इसकी बनावट कुछ छत्तीसगढ़ की ही तरह है। इसलिए बिलासपुर को मीनि छत्तीसगढ़ कहना उचित होगा।  इतनी विविधता सिर्फ और सिर्फ भारत में ही हो सकती है। इसी विशेषता ने यहां आने वाले हर इंसान को अपना बना लिया।

सीजी वाल-आपका लालन पालन ऐसे राज्य और शहर में हुआ…जहां की कला संस्कृति के चर्चे जगत प्रसिद्ध हैं। लखनऊ की नफासत के विपरीत छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति कुछ अलग हटकर है…

अभिषेक पाठक—हर प्रदेश की अपनी तासीर होती है। उसकी अपनी मौलिकता होती है। जिलों की अपनी एक पहचान होती है। छत्तीसगढ़ और बिलासपुर के साथ भी कुछ ऐसा ही है। मैं लखनऊ के साथ- साथ बंगाल से भी थोड़ा बहुत परिचित हूं। लेकिन छत्तीसगढ़ की बात कुछ अलग है। छत्तीसगढ़ को समझने के बाद आपको भारत को समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती है। चाहे किसी भी क्षेत्र में हो। प्रदेश को सभी प्रांतों के लोगों ने प्रदेश को मिलकर संवांरा है। उत्तर से  दक्षिण…पूरब से पश्चिम…सभी जगह थो़डा बहुत रहने का अवसर मिला। लेकिन बिलासपुर का अनुभव कुछ अलग है। यह शहर अपने आप में समग्र छत्तीसगढ़ है। मेरे लिए यह किसी उपलब्धि से कम भी नहीं है कि मुझे यहां सेवा का अवसर मिला ।

abhishek4सीजी वाल-पहली बार बिलासपुर कब आना हुआ..। क्या कभी सोचा था कि यहां काम करने का अवसर मिलेगा।

अभिषेक पाठक— बिलासपुर आने का पहली बार अवसर प्रशीक्षण के दौरान मिला। यह अवसर कुछ घंटों या दिन का था। कोंंडागांव, राजभवन, जांजगीर, गरियाबंद, दुर्ग, कांकेर, कोरिया में काम करने का अवसर मिला। सभी जगह आत्मीयता मिली।  लेकिन बिलासपुर के जीने का अंदाज कुछ अलग है। यहां प्रदेश की सारी विशेषताएं देखने को मिल जाती है। दूसरे प्रांतों की भी झलक भी देखने को मिलता है। अपनी मौलिक विशेषताओं के साथ लोग आकाश में दिखाई देने वाले इंद्रधनुष की तरह एक नजर आते  हैं।

सीजी वाल-पुलिस अधिकारी होने के नाते प्रदेश के विकास में सबसे बड़ी अडचन क्या है। बिलासपुर को आप कहां देखते हैं।

अभिषेक पाठक — प्रदेश ने तेजी से विकास किया है। राज्य गठन के बाद विकास की ऐसी भूख और गति किसी अन्य राज्यों में नहीं दिखाई देती है। बिलासपुर जिला प्रदेश का अहम हिस्सा है। बिलासपुर ने भी प्रदेश के साथ तेजी से विकास किया है। यहां अपार संभावनाएं। अविभाज्य मध्यप्रदेश के समय एसईसीएल,रेलवे जोन, कोसा उत्पाद के लिए बिलासपुर प्रसिद्ध था। आज का बिलासपुर कल के बिलासपुर से बहुत आगे निकल चुका है। उसे अभी बहुत कुछ पाना है। उस दिशा में हमारी सरकार काम भी कर रही है।

सीजी वाल-क्या नक्सली समस्या से प्रदेश को कभी छुटकारा मिलेगा। आप नक्सल आपरेशन का भी हिस्सा रह चुके हैं…

अभिषेक पाठक– नक्सली समस्या को खत्म होना ही होगा। विकास का काम तेजी से हो रहा है। नक्सली गतिविधियों में लगातार कमी आ रही है। घटनाक्रम में तेजी से बदलाव हुआ है। जनता भी नक्सलियों के मंसूबों को समझ चुकी है। परिणाम भी सामने आने लगे हैं। लोग नक्सलियों का विरोध कर रहे हैं। वह दिन दूर नहीं कि जब नक्सल गतिविधियां गुजरे जमाने की बात कहलाने लगेंगी। सरकार इस दिशा में तेजी से काम भी कर रही है।

abhishek1सीजी वाल-पुलिस और जनता के बीच आप किस प्रकार का संबध देखते हैं..पुलिस को आज भी संदेह की नजर क्यों देखा जाता है.

अभिषेक पाठक— यह कहना गलत है कि जनता..पुलिस को संदेह की नजर से देखती है। जनता और पुलिस के बीच विश्वास का गहरा नाता है। आपकों समझना होगा कि पुलिस कर्मचारी ऊपर से नहीं टपके हैं.. बल्कि जनता के बीच से आएं है। वह जनता के बीच में ही रहता है। पुलिस का उद्देश्य जनहित हैं…जनता भी भली भांती जानती है। समस्याओं को सुलझाना है…समस्याओं को होने से रोकना पुलिस का काम है। लोग समझ भी रहे हैं…विश्वास के साथ पुलिस तक पहुंचते भी हैं। पुलिस अधिकारियों का हमेशा से यही नजरिया रहा है कि पुलिस और पब्लिक के बीच दोस्ताना और जनहित वाले संबध हों…

सीजी वाल-बिलासपुर पुलिस के सामने आपके एक साल के अनुभव में सबसे बड़ी चुनौती क्या है…उसे लेकर आपका विभाग क्या कर रहा है..

अभिषेक पाठक—शुरूआती अड़चनों के बाद धीरे-धीरे ट्रैफिक व्यवस्था पटरी पर आ गयी है। सडकों के नए विकल्प के साथ शहर पर दबाव कम हुआ है। अन्य विभागों और जनता के सहयोग से ट्रैफिक व्यवस्था को दुरूस्त किया जा रहा है। लोगों की जान माल की सुरक्षा के मद्देनजर हेलमेट अभियान चलाया गया। हालांकि शुरू में लोगोें को लगा कि यह थोपा जा रहा है। बाद में जनता ने ही महसूस किया कि हेलमेट उनके जीवन का अनिवार्य अंग है। देखने में आया है कि बिलासपुर के नासमझ युवा नशे का तेजी से शिकार हो रहे हैं। यह चिंता का विषय है। नशे के खिलाफ पुलिस की लगातार कार्रवाई चल रही है। स्वयं सेवी संस्थाओं का सहयोग लिया जा रहा है। नशे के स्रोत पर जब तब छापामार कार्रवाई चल रही है। बच्चों को नशे के दुष्परिणामों के बारे में बताया जा रहा है। आने वाले समय में सघन अभियान चलाकर नशे के कारोबार को खत्म करना और युवाओं को नशे के दलदल से निकालना पुलिस का लक्ष्य है। जनसहयोग से हम इस लक्ष्य को पूरा भी करेंगे। जैसा की आपरेशन मुस्कान को हमें सफलता मिली उसी तरह यहां भी सफलता मिलेगी।

सीजी वाल-पुलिसकर्मियों का जीवन पब्लिक और कर्तव्य के बीच होकर रह जाता है। इन सबके बीच निजी जिन्दगी और परिवार कहां होता है।

अभिषेक पाठक— पुलिस के पास छुट्टियां नहीं होती। परिवार के लिए उनके पास समय नहीं होता है। धीरे धीरे परिवार भी समझने लगता है कि समाज के लिए उनके घर का सदस्य कितना महत्वपूर्ण है। बीच-बीच में उनकी सेवाओं को देख सुनकर परिवार के सदस्यों को गर्व होता abhishek2है। बाद में सबकुछ रूटीन में आ जाता है। लोगों को भी मालूम है कि पुलिस अपने निजी हितों पर जनहित को तवज्जो देता है। जब सीएसपी लखन पटले की बच्ची ने जन्म लिया। परिवार अस्पताल में था। उस समय बिलासपुर की पुलिस गनियारी से गायब तीन दिन के बच्चे की तलाश कर रही थी। सामान्य रूप से सोचा जाए तो उस समय लखन पटले को अपने परिवार के साथ होना था। लेकिन वह आपरेशन पर था। चार घंटे के अथक प्रयास के बाद नवजात बच्चे को ढूंढ निकाला गया। सफल आपरेशन के बाद थानेादर,एसडीओपी और सीएसपी का फोटो देखने बाद सभी ने अनुमान लगा लिया होगा कि स्वहित पर पुलिस जनहित को हमेशा तवज्जों देती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका काम लोगों की खुशियों में अपनी खुशी तलाशना है। जनता की सेवा करना। जब ऐसी गतिविधियों की जानकारी परिवार को मिलती हैै तो छुट्टियां, परिवार को कम समय देने की शिकायत अपने आप दूर हो जाती है। 

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