मंहगी दाल के लिए जिम्मेदार कौन…

BHASKAR MISHRA
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R_CT_RPR_546_20_KARRWAI_VIS_VISHAL_DNGबिलासपुर— दाल महंगी होने में जितना जिम्मेदार स्टाकिस्ट, मिलर और व्यापारी हैं उतना ही जिम्मेदार प्रदेश की सरकार भी है। अभी तक दाल के संग्रहण को लेकर सरकार के पास कोई ठोस निर्देश नहीं हैं। इसका फायदा व्यापारियों ने जमकर उठाया। देखते ही देखते दाल की कीमत आसमान को छूने लगी। थाली से प्रोटीन गायब हो गया। व्यापारियों की चालाकी ने सरकार के होश उडा दिये। सरकार ने भी धड़ाधड़ छापामार अभियान चलाकर स्टाकिस्टों और मिलरों की नींद को हराम कर दिया है। जानकारी के अनुसार अब प्रदेश सरकार ने विभिन्न चरणों में दाल संग्रहण को लेकर नियम बनाने का एलान किया है।

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                     दाल की कीमत इन दिनों आसमान में है। आम जनता परेशान है। सरकार की बेचैनी भी किसी से छिपी नहीं है। प्रश्न उठता है कि आखिर दाल की कीमत यकायक इतनी बढ़ी क्यों। इसे समझने की जरूरत है। कोई समझे या ना समझे सरकार ने समझ लिया है। क्योंकि बढ़ी हुई कीमतों का कारण भी सरकार ही है। जिसका फायदा व्यापारियों ने जमकर उठाया है।

                 मध्यप्रदेश सरकार ने दो दिन पहले दाल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए खाद्य नियमों में आमूल चूल परिवर्तन किया है। जिसका विरोध कटनी में देखने को मिला। बाद में सरकार ने नियमों में संशोधन किया। व्यापारियों ने फिर कहीं जाकर अपना दुकान खोला।

               छत्तीसगढ़ सरकार ने भी दो तीन दिन के भीतर दाल की कीमतों पर अंकुश लगाने और जमाखोरी पर नकेल कसने का खाका तैयार कर लिया है। हाल फिलहाल सरकार के पास दाल जैसे खाद्य पदार्थों की जमाखोरी के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है। जिसका नतीजा है कि जमाखोरों ने कमाल दिखाया…जिसके बाद सरकार की बेबशी सामने आ गयी। जानकारी के अनुसार अब सरकार ने दाल की कीमतों पर नियंत्रण के लिए नियम बनाने का एलान किया है।

         वर्तमान स्थिति के अनुसार एक हजार क्विटंल तक व्यापारियों को लायसेंस की जरूरत नहीं होती है। ट्रेडर्स को 2000 हजार क्विंटल के लिए लायसेंस लेना अनिवार्य है। मिलरों पर दाल स्टाक को लेकर किसी प्रकार का नियम नहीं है।

                दाल व्यापारी संघ के अध्यक्ष अशोक ओवेरानी के अनुसार हमें जमाखोर क्यों कहा जाता है। समझ से परे है। हमने कहीं भी नियमों के खिलाफ काम नहीं किया। छापामार कार्रवाई के बाद मिलरों के ठिकाने से जो भी दाल मिले…उसे जमाखोरी कहना अनुचित है। उन्होंने बताया कि बिलासपुर में करीब 35 दाल मिल हैं। जिसमें से 25 को लायसेंस हासिल है। इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है कि मिलर इतना से अधिक दाल का संग्रहण नहीं कर सकते हैं। ऐसी सूरत में मिलरों को जमाखोर कहना उचित नहीं होगा।

IMG_20151023_150330         दाल मिल व्यापारी संगठन के अध्यक्ष ओवरानी ने बताया कि हमारे पास मिलिंग के लिए कच्चा माल आता है। माल कम भी हो सकता है और ज्यादा भी। किसी ने अपना दाल उठाया और किसी ने नहीं उठाया। इसमें हमारी क्या गलती है। रही बात सीमा से अधिक दाल संग्रहण की तो हमें आज तक मिल में कितना दाल रखना है इस बारे में खाद्य विभाग मौन है।

                 उन्होंने बताया कि हमारे यहां दाल का कच्चा माल विदेशों से आता है। इम्पोर्टर माल को गोदी में या गोदाम में रोक कर रखते हैं। कीमत बढने पर हम तक पहुंचाते हैं। मुम्बई में ऐसा ही हुआ। महाराष्ट्र सरकार ने दाल के कच्चे माल को तीन दिन के भीतर हटाने का आदेश दिया है। यदि कच्चा माल.. हम तक सही समय पर पहुंच जाता तो दाल की कीमत इतनी नहीं होती। जिसे लेकर आम जनता परेशान है। हम लोग केवल मीलिंग करते हैं। जमाखोरी नहीं।

             जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार अब मध्यप्रदेश की तर्ज पर दाल की कीमतो पर नियंत्रण रखने के लिए नियम बना रही है। नए नियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति या मिलर अपने ठिकानों पर एक हजार क्विंटल से अधिक दाल का स्टाक नहीं रख सकता है। यदि ऐसा करता है तो उस पर कार्रवाई होगी।

नियम का करेंगे इंतजार

नए नियम क्या हैं हमें नहीं मालूम। एक हजार क्विटंल स्टाक रखने की बात सामने आ रही है। यदि ऐसा हुआ तो मिलरों को बहुत नुकसान होगा। वर्तमान में स्टाकिस्टों को एक हजार क्विटंल रखने का अधिकार है। यदि ऐसा नियम आता है तो दाल की कीमते घटने के वजाय बढेंगी। बहरहाल सरकार के आदेश का इंतजार है।

                                                                                                             अशोक औवेरानी..अध्यक्ष, दाल मिलर संघ

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