भरोसा टूटना “आप” का

Shri Mi
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nathmal sharmaनथमल शर्मा।अब आप में भगदड़ मची है । लोगों का विश्वास खत्म होते दिख रहा है आप से। आपस के झगड़े,फिर एक – दूसरे पर आरोप । बात इतनी बढ़ गई कि मुख्य मंत्री भी लपेटे में आ गये । दो करोड़ रूपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया । इसे लेकर तरह – तरह की बातें हो रही है । बात तो शायद पहले से ही हो रही थी अब दूर तक निकल पड़ी है ।ये बात “आप” की है।यानी आम आदमी पार्टी । भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे आंदोलन से उपजी आप। दिल्ली में हुआ था अन्ना आंदोलन । लोकपाल की मांग को लेकर । भ्रष्टाचार के खिलाफ हुई इस लड़ाई में  सभी वर्गों के लोग जुड़े। खासकर युवा। लोकतंत्र में बरसों से चुप समाज में एक लहर सी उठी थी । युवाओं को अन्ना हजारे और फिर शांति भूषण,शशि भूषण,  अरविंद केजरीवाल,योगेन्द्र यादव,कुमार विश्वास आदि में कोई बात दिखने लगी। भ्रष्टाचार से त्रस्त हो चुके लोगों को लगा कि जनता के इस तरह सामने आने से कुछ सुधार हो सकता है । यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल द्वारा आयोजित नहीं था । कुछ सामाजिक संगठनों ने आवाज़ उठाई और लोग जुटने लगे थे ।(ये संगठन एनजीओ कहलाते हैं ।) बिना किसी विचार,सिद्धांत के ही । केजरीवाल और उनके साथियों ने इसकी जरूरत भी नहीं है कहा । हम तो लोकपाल चाहते हैं । राजनीति से मतलब नहीं । खैर,यह सब बातें ज्यादा पुरानी नहीं है इसलिए सबको ही याद है । आप बनी एक राजनीतिक दल के रूप में । आप ने सबको पटकनी देते हुए दिल्ली पर कब्जा कर लिया ।

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                             इसी आप के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कपिल मिश्रा को मंत्री बनाया । इतने दिनों तक बनाए भी रखा। पिछले दिनों मंत्रिमंडल से हटा दिया । अब भूतपूर्व होने के बाद कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल ने दो करोड़ रूपये की रिश्वत ली। यह भी कहा कि नगदी रूपये मेरे सामने लिए । इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगी । हाँ,केजरीवाल के पुराने साथी और अब विरोधी हो चुके योगेन्द्र यादव ने कहा कि आरोप झूठे हैं । केजरीवाल की ईमानदारी पर संदेह करना उचित नहीं । वे रिश्वत ले ही नहीं सकते । यही बात कुमार विश्वास ने भी कही। विश्वास और केजरीवाल के रिश्ते भी कोई बहुत अच्छे नहीं चल रहे। फिर भी उन्होंने इसे पार्टी के फोरम में बात रखने की बात कही । पचास करोड़ की किसी डील का मामला है ये,और अभी ना जाने कितनी परतें खुलेंगी ।

                                आप के साथ समस्या यह भी है कि उसके अध्यक्ष के बजाय सुप्रीमों है । पार्टी का कोई संविधान भी होगा लेकिन जो केजरीवाल बोले वही सही की तर्ज पर आप चल रही है । केजरीवाल की महत्वाकांक्षा भरपूर रही। इतनी कि दिल्ली छोड़ बनारस चले गए नरेन्द्र मोदी  (अब प्रधानमंत्री ) के खिलाफ चुनाव लड़ने । मुंह की खाकर वापस आए। कहा कि दिल्ली की सेवा करना है । हाल ही के चुनाव में पंजाब और गोवा में भी प्रत्याशी उतारे । दोनों प्रदेश में सफलता नहीं मिली । पंजाब में प्रचार के दौरान अनिवासी भारतीयों का भी काफी बड़ी संख्या में पंजाब में जमावड़ा हुआ । इस पर काफी बातें हुई। पुराने खालिस्तान आंदोलन को भी याद किया गया । हाल ही में दिल्ली नगर निगमों के चुनाव हुए और आप प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई । आप के पार्षद,विधायक पार्टी छोड़ जाने लगे । कुछ चले गए। धूमकेतु की तरह चमक कर उभरी आप आज धूमिल सी हो गई है । लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं ।

                             राजनीति में सबसे जरूरी है विश्वास । राजनीति क्या जीवन के हर क्षेत्र में भरोसा जरूरी है । हालांकि आज सबसे बड़ा संकट भरोसा बनाए और बचाए रखने का ही है । रिश्तों पर भरोसे का संकट है । हम अफसरों पर भरोसा नहीं करते । नेताओं ने बहुत पहले ही भरोसा खो दिया । वायदे तो किए ही जाते हैं तोड़ने के लिए । कुछ इसी तर्ज पर राजनेता करते हैं वायदे और हम अच्छे दिनों के इंतज़ार में बार-बार अपने प्रधानमंत्री के पुराने भाषणों की क्लिप सुनते हैं । आज की मन की बात भी । हम अपनी अरपा को बचाए जाने का  भरोसा अभी भी करते हैं , और बस्तर से नक्सली उन्मूलन का भरोसा करते हुए चाय की चुस्की लेते हुए चैनल बदलते रहते हैं ।

                           अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी धीरे-धीरे अलग हो गए। दूर हुए इन साथियों में एक तो राज्यपाल है  (दूर होने के बाद )। किसी ने अपनी पार्टी बना ली है तो पुराने काम वकालत में व्यस्त । बिखरती आप के सामने खुद को बचाए रखने का संकट दिख रहा है । दरअसल लोकतंत्र में धारदार और सशक्त विपक्ष भी उतना ही जरूरी है जितना कर्मठ सत्ताधारी दल। लोगों ने आप में ये संभावनाएं देखी थीं । लोगों ने इसीलिए भरोसा किया और देश के दिल दिल्ली की सत्ता सौंप दी आप को। लेकिन इतनी जल्दी ही लोग देख रहे हैं कि कैसे वे ठगे  गए। अपने टूटते भरोसे पर लोग दुखी हैं । यह दुख फिलहाल गुस्से में नहीं बदल रहा है । लोकतंत्र के लिए भरोसे का बने रहना जरूरी है ।

                               हालांकि आज तो लोक तंत्र के जाल में उलझा अपने भरोसे को बचाए रखने की कोशिश में बार-बार छले जा रहा है ।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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