रायपुर।मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि धान छत्तीसगढ़ के किसानों की आमदनी का मुख्य जरिया है और यह हमारे लिए सिर्फ फसल नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत से भी जुड़ा हुआ है।मुख्यमंत्री ने आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से प्रआसारित अपनी मासिक रेडियोवार्ता रमन के गोठ में प्रदेशवासियों को सम्बोधित करते हुए इस आशय के विचार व्यक्त किए। उन्होंने इस बार की अपनी रेडियोवार्ता को किसानों की बेहतरी और खेती की उन्नति के लिए सरकार के प्रयासों पर विशेष रूप से केन्द्रित किया।
Join Whatsapp Group | यहाँ क्लिक करे |
कृषि आधारित कारोबार का टर्नओव्हर
87 हजार करोड़ रूपए तक पहुंचाने का लक्ष्य
डॉ. सिंह ने वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए कहा – छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके लिए राज्य को तीन अलग-अलग जलवायु क्षेत्र में बांटकर कार्ययोजना तैयार की है। जमीन की विशेषता के अनुरूप किसानों को बीज उपलब्ध कराए गए और प्रशिक्षण भी दिया गया। राज्य सरकार के प्रयासों से छत्तीसगढ़ में खेती और उससे संबंधित व्यवसायों का टर्नओव्हर 44 हजार करोड़ रूपए तक पहुंच गया है, जिसे वर्ष 2022 तक बढ़ाकर हम 87 हजार करोड़ रूपए तक पहुंचाना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा-किसानों के पास पैसा आने पर उनके घरों में मांगलिक कार्य होंगे, वे अपने बेटे-बेटियों की शादी कर सकेंगे, जरूरी सामान खरीद सकेंगे और जरूरी निर्माण कार्य भी करवा सकेंगे। इस प्रकार किसान और गांवों का विकास होगा। डॉ. रमन सिंह ने अपने रेडियो प्रसारण में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री मोदी के आशीर्वाद से ही राज्य सरकार को यह निर्णय लेने की शक्ति मिली।
मुख्यमंत्री ने कहा-छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में मुख्य रूप से धान की खेती होती है, लेकिन जब हम दक्षिण और उत्तर की ओर बढ़ते हैं तो सम्पूर्ण बस्तर और सरगुजा संभाग में वहां के ग्रामीणों के लिए लघु वनोपज भी आमदनी का मुख्य जरिया होता है। बस्तर में तेन्दूपत्ता संग्रहण उनकी आमदनी का सबसे बड़ा साधन है।
मुख्यमंत्री ने खेती के क्षेत्र में बस्तर में आ रहे परिवर्तन का उल्लेख करते हुए कहा-सहकारिता के जरिए वहां किए जा रहे उपाय काफी सफल हो रहे हैं। बस्तर अंचल में आठ हजार हेक्टेयर से अधिक रकबे में काजू के पौधे लहलहा रहे हैं और वहां इसका वार्षिक उत्पादन छह हजार मीटरिक टन से ज्यादा हो गया है।
इससे बास्तानार, बकावण्ड, बस्तर, तुरेनार, तोकापाल और दरभा क्षेत्रों में खाली पड़ी जमीन और जंगल को अतिक्रमण से बचाने में भी मदद मिल रही है। मुख्यमंत्री ने कहा- काजू प्रसंस्करण के लिए बस्तर के ग्राम आसना में सहकारिता के मॉडल के अनुरूप कारखाना लगाया जा रहा है। इसका संचालन भी स्व-सहायता समूह द्वारा किया जाएगा।
आदिवासी परिवारों को स्व-सहायता समूहों के माध्यम से काजू के 300-300 पौधे दिए जा रहे हैं, जो राजस्व और वन विभाग की भूमि पर लगाए जाएंगे। इससे बस्तर में काजू का कारोबार 35 करोड़ रूपए से ज्यादा का होने का अनुमान है। केरल, कर्नाटक और गोवा में भी छत्तीसगढ़ के बस्तर के काजू बेचने के लिए अनुबंध की तैयारी की जा रही है।