तर्पण का एक रूप- “तेरा तुझको अर्पण”

Chief Editor
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arpan

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ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण के साथ जब हम आरती की यह पंक्तियां गुनगुनाते हैं – ” ऊँ जय जगदीश हरे , भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे ………….”, तो प्रार्थना की पूर्णता इन पंक्तियों के साथ होती है – ”  तन-मन-धन , सब है तेरा……….  तेरा तुझको अर्पण ….क्या  लागे मेरा…..।” सिर्फ यह प्रार्थना ही नहीं , बल्कि कोई  भी अनुष्ठान हो उसे ” तेरा तुझको अर्पण की भावना के बिना शायद पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। इसीलिए श्राद्ध पक्ष पर तर्पण अनुष्ठान की पूर्णता के लिए भी ” तेरा तुझको अर्पण  ”… का समर्पण भाव आवश्यक लगता है।

कुछ इसी तरह की भावना के साथ श्राद्ध के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने पितृ-पक्ष के समापन यानी सर्व पितृ अमावस्या पर 12 अक्टूबर सोमवार को बिलासपुर शहर के सभी मंदिरों के सामने भिक्षु-भोज की पहल की है। लोक-मीडिया सीजीवाल भी इस अनुष्ठान में सहयोगी है। श्री पाण्डेय की यह पहल प्रणम्य-प्रशंसनीय और सभी के सहयोग की आकांक्षा भी है। वैसे भी श्राद्ध पक्ष श्रद्धा का एक रूप है। इन दिनों पखवाड़े भर अपने पितरों का स्मरण कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। माना जाता है कि पितरों की तृप्ति के लिए दान के रूप में उन लोगों की मदद करें , जिन्हे मदद की जरूरत है। पाखंड और आडम्बर से दूर कोई भी इस बात को महसूस कर सकता है कि यदि किसी होनहार गरीब बच्चे के हाथ में कोई कापी-किताब से भरा हुआ बस्ता सौंप दे तो उसे कितनी तृप्ति मिलेगी….। या किसी बीमार बेसहारा को इलाज के लिए कोई अस्ताल पहुंचा दे तो उसकी मुस्कान में कितनी दुआएं  झर-झर झरने लगेंगी…..। या रास्ते में लिफ्ट मिलने की उम्मीद में खड़े किसी जरूरतमंद को कोई मंजिल तक पहुंचा दे तो उसका मन शुभकामनाओं की कितनी धार उड़ेल देगा….। इसी तरह भोजन की आस में मंदिरों के सामने बैठे भिक्षुओँ को तृप्ति मिले तो तर्पण को पूर्णता प्रदान करने में सहायता मिल सकती है।

सब मानते हैं -हमारा जीवन पूर्वजों की देन है…..। हम अपनी जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं- यह पूर्वजों का आशिर्वाद है…..। धर्म कहता है कि हमें जो कुछ मिला उसे देने वाले के प्रति अपना आभार जताएं। हमें जो कुछ मिला उसका एक हिस्सा उन लोगों तक भी पहुंचाएं, जिन्हे इसकी जरूरत है….।  शायद यही  है  ”तेरा-तुझके अर्पण….”।अर्पण के रूप में इस तर्पण की पहल की है- सीवीआरयू के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने….। आइए एक-एक अँजुली हम भी समर्पित करें और हिस्सेदार बनकर इस अनुष्ठान को पूर्णता प्रदान करें ……।

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