जंगल में लूटतंत्र (न्याय – 2)

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अगली पेशी 15 दिन बाद होने के कारण राजा सिंह को अवलोकन का अवसर मिल गया, उसने इसीमें समय व्यतीत करने का निश्चय किया। राजा ने देखा कई वन्यप्राणी लगातार न्यायालय आते जाते हैं, वे सुबह से शाम तक कभी पेड़ के नीचे बैठे रहते हैं, कभी भागदौड़ कर पसीना बहाते हैं।

उसने कचहरी के बाहर एक स्थान पर बैठकर वन्यप्राणियों से वार्तालाप करना, वकीलों से भेंट कर कानून की जानकारी लेना आरंभ किया। एक पखवाड़ा बीता, थानेदार पुनः कोर्ट में उपस्थित नहीं हुआ, इस बार उसने अपने अस्वस्थ होने का मेडिकल सर्टिफिकेट भेजकर 15 दिन का अतिरिक्त समय मांग लिया।

राजा कुछ परेशान हुआ, उसने गहराई से व्यवस्था का अवलोकन आरंभ किया। कुछ ही दिनों में उसे समझ में आया कि समस्याएं अनेक हैं, न्यायालय में फैसले तो होते हैं, परन्तु अनेक मामले लंबित ही रहते है, इसका एक कारण प्रक्रिया है और मुख्य कारण प्रकरणों की संख्या है। उसने देखा ढेरों ऐसे प्रकरण लंबित हैं, जो समझदारी के अभाव, आपसी समझौता नहीं होने, कर्त्तव्य का स्मरण नहीं कराए जाने से कोर्ट तक पहुंचे हैं। इन विवादों को कोर्ट पहुंचने के पहले ही समाप्त किया जा सकता था।

राजा को एक युक्ति सूझी, उसने मंत्री के साथ छोटे विवाद में फंसे वन्यप्राणियों को समझाइश देना आरंभ किया। एक दिन उनके पास दो घोड़े आए। राजा को उन्होंने बताया वे दोनों भाई हैं, 10 वर्ष पूर्व पिता की मृत्यु हो गई थी। कुछ साल बाद उनमें संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ, यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है। उन्होंने बताया वे रहते तो एक ही छत के नीचे हैं, परन्तु विवाद के कारण घर के बीचोंबीच दीवार खड़ी हो गई है। जिस संपत्ति की प्राप्ति के लिए वे लड़ रहे हैं, उसे वे लगातार खोते जा रहे हैं…

राजा ने हंसते हुए कहा- बुद्धिमान अश्व बंधुओं, बंटवारे में विवाद का मूल कारण अहंकार होता है, अहंकार का त्याग कीजिए, वर्षों से चल रही भागदौड़ समाप्त हो जाएगी। घोड़ों को बात समझ में आई, उन्होंने राजा से मध्यस्थता कर समान बंटवारा कराने का आग्रह किया।

राजा और मंत्री को वे अपने घर ले गए, संपत्ति का विवरण निकाला गया। सिंह ने कहा- आप दोनों में जो भी बड़ा हो, वह संपत्ति के दो भाग करे और अपना हिस्सा ले ले, परन्तु अधिकार का उपयोग करने वाला बड़ा भाई अपने कर्त्तव्यों का पालन करना न भूले…

राजा की बात सुनकर छोटा भाई आशंकित हो गया, उसे लगा न्यायालय में अधिक प्राप्ति का दावा करने वाले बड़े भाई को सुनहरा अवसर मिल गया है, परन्तु राजा द्वारा पिता की तरह कर्त्तव्य का स्मरण कराए जाते ही बड़े भाई की आंखों में आंसू आ गए।

उसने 6:4 के अनुपात में बंटवारा किया, बड़ा हिस्सा छोटे भाई को देते हुए कहा- विवाद के कारण इसे अत्यधिक आर्थिक क्षति हुई है, इसलिए यह अधिक पाने का अधिकारी है…वर्षों से चला आ रहा विवाद दो घंटे में समाप्त हो गया… घर के अंदर खड़ी की गई दीवार तोड़ दी गई….
राजा और मंत्री इसी तरह छोटे छोटे झगड़ों का निपटारा करते रहे। अगले 15 दिनों बाद वकील साहब आवश्यक कार्य से अवकाश पर थे, लिहाजा फिर पेशी की तारीख आगे बढ़ा दी गई।

आगे भी कई कारणों से तारीख बढ़ती गई, समय अधिक लगने के बाद भी सिंह तो मोर्चे पर डटा रहा, परन्तु एक ही जगह टिके रहने से जामवंत की जेबें खाली होने लगीं, इस बीच भैंसे थानेदार ने उन्हें तलब करना आरंभ कर दिया। उसे रुपए नहीं मिले थे, अतः वह गिरफ्तारी की धमकी देते हुए प्रकरण वापस लेने का आग्रह करने लगा।

कोर्ट के बाहर हर रोज लगने वाली चौपाल में वन्यप्राणियों की भीड़ भी बढ़ने लगी थी। इन सबसे जामवंत चिंतित हो गए। वे किसी को अपना व राजा का परिचय नहीं देना चाहते थे।

कुछ दिन बाद उन्होंने राजा से कहा- राजन्, अब अधिक दिनों तक यहां रुके रहने पर हमें अपना असली परिचय देना पड़ेगा, उस स्थिति में हमारा निरीक्षण भी समाप्त हो जाएगा, अतः चलिए आगे चलते हैं। निरीक्षण पूर्ण होने के पश्चात् इस व्यवस्था पर व्यापक विचार किया जाएगा। राजा न्यायिक व्यवस्था का अवलोकन कर चुका था, अतः वह दूसरी व्यवस्था का निरीक्षण करने पर सहमत हो गया।

( आगे है शापिंग माल “ भेड़ियाज“)

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