कैसे बचेंगे ‘जटायु’ ?

Chief Editor
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 jatau(प्राण चड्डा)बिलासपुर। ‘ऊँचे आकाश पर उड़ान भरने वाले गिद्धओं को जू के पिंजरे में देख ये आशंका होना स्वाभाविक है कि दुर्लभ्य जीवों का अंतिम आशियाना क्या चिड़ियाघर ही होगा,,कम होते परिंदों को बचाने के लिए अब सभी जिलों में ‘जिले का’ एक पक्षी घोषित कर उसकी उसका संरक्षण जरूरी है. छ्तीसगढ़ के बिलासपुर के जू कानन पेंडारी में ये गिद्ध खुडिया; और लोरमी” के इलाके से कोई दो साल के दौरान लाये गये हैं, ये मुगेंली जिले में हैं, जहाँ और कुछ गिद्ध बताये जाते हैं ,,!!
लगभग 90 सेमी ऊँचे और मजबूत गिद्ध सफाई कर्मी है,,पर दो दशक में हुए ये दिखाना कम हो गए,बताया जाता है दुधारू मवेशियों को अधिक दूध देने लिए हार्मोन्स के इंजेक्शन दिए जाते और फिर इन मवेशिओं के मरने के बाद गिद्ध ने उसे अपनी खुराक बना लेते.. जिस वजह इन हार्मोन्स के बचे असर से गिद्धों के अंडे से बच्चे नहीं निकलते,गिद्ध काफी ऊँचे पड़े पर घोंसला बनते है.. अब ऊँचे और मजबूत पेड़ कम हो चले ! आज कम ही लोगो को याद है कि अंतिम बार गिद्ध कब देखा है ,,!!
जू में गिद्ध को चाल और सुन्दरता देखते बनती है,,कुछ दिनों हुए अचानकमार टाइगर रिजर्व का दफ्तर मुंगेली जिले के लोरमी में शुरू हुआ. बाघ और गिद्ध का नाता है, बाघ शिकार खाने के बाद जो बचा छोड़ जाता है वो गिद्धों का भोजन होता है ,,इस तरह उनकी इस सफाई कर्म से जंगल में वन्यजीवों में बीमारी नहीं फैलती ..
आज वक्त है इस शानदार जटायु को बचाएँ कल फिर वक्त न होगा ,,
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