कम बैक कल्लूरी?

Shri Mi
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SUNDAY_FILE_SD(संजय दीक्षित)बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी की बस्तर से वापसी हो सकती है। वापसी की वजह ना तो पुअर पारफारमेंस है और ना ही कोई विवाद। सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोग भी मानते हैं कि कल्लूरी के बस्तर जाने के बाद माओवादी बैकफुट पर हैं…..नक्सल हिंसा में भी कमी आई है। मगर ये भी याद रखना होगा कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनने के बाद सूबे की राजनीति बदल रही है। बस्तर में 12 सीट हैं। अजीत जोगी बस्तर में पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं। भनपुरी के दो बार के एमएलए और जनाधार वाले नेता अंतूराम कश्यप को अपनी पार्टी में शामिल कर केदार कश्यप को घेर दिया है। अंतूराम ने बलीराम कश्यप को दो बार हराया था। ऐसे में, बीजेपी के भीतर सरकार पर प्रेशर बनने लगा है कि चुनाव तक कल्लूरी को वापिस बुलाया जाए। सरकार के सामने संकट यह है कि आईजी लेवल पर अफसरों का टोटा हैं। रायपुर, और दुर्ग जाने के लिए आईजी तैयार मिलेंगे। मगर बस्तर के नाम पर हनुमान चालीसा पढ़ने लगते हैं। अलबत्ता, कल्लूरी के साथ प्लस यह है कि वे राजी-खुशी बस्तर गए हैं। बहरहाल, अब सरकार पर निर्भर करेगा कि वह पार्टी की सलाह पर अमल करती है या फिर नजरअंदाज।

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बेदाग बरी, बट….

प्रमोशन केस में एडिशनल चीफ सिकरेट्री डीएस मिश्रा बरी हो गए हैं। अलबत्ता, फायनेंस डिपार्टमेंट के नीचे के अफसरों को जरूर नोटिस इश्यू की जा रही है। आपको बता दें, 2008 में फायनेंस के 318 अधिकारियों, कर्मचारियों का बिना प्रोसिजर का पालन किए, प्रमोशन दे दिया गया था। हाल ही में यह प्रकरण कैबिनेट में गया। और, मंत्रियों ने इसकी जांच कर संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने कहा। इसके बाद सरकार ने मामले का परीक्षण कराया। पता चला है, उसकी रिपोर्ट आ गई है। चलिये, डीएस बच गए! मगर प्रमोशन पाए अधिकारियों की शामत आ गई है। अब, उनका अगला प्रमोशन डु्यू हो गया है। लेकिन, पुराने केस के चलते उनका प्रमोशन अधर में लटक गया है। अब, सभी सत्ता के गलियारों में चक्कर लगा रहे है। परन्तु, बड़ों के बीच के पचड़े के चलते उन्हें कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है।

कलेक्टर तालाब में

पिछले हफ्ते की बात है। सीएम हाउस में मीटिंग हो रही थीं। इसमें सीएम के सिकरेट्रीज समेत चुनिंदा अधिकारी मौजूद थे। सीएम ने कहा, कलेक्टरों का अब सड़क पर आना चाहिए। शहरों में बहुत इश्यूज हैं। ट्रैफिक की समस्या लगभग सभी जगहों सामने आ रही है। इस पर एक एसीएस ने चुटकी ली, सर….! हमारे कलेक्टर्स तालाब और कीचड़ में फोटो खींचवा रहे हैं। उसमें से बाहर आए तो सड़क पर आने के लिए कहा जाए! इस पर सीएम समेत सभी ने जोर का ठहाका लगाया। फिर, सीएम गंभीर हुए। बोले, कलेक्टरों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। ध्यान रहे, कुछ कलेक्टरों ने सोशल मीडिया में अपनी फोटो वायरल की थी, उससे मंत्रालय के अफसरों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। सीएम की नोटिस में भी इस बात को लाई गई है।

याद आए बजाज

बजाज कंपनी भले ही अब अप्रासंगिक होती जा रही है मगर आईएफएस के बजाज का सेंसेक्स अभी भी हाई चल़ रहा है। हम बात कर रहे हैं, नया रायपुर के पूर्व सीईओ एवं आईएफएस अफसर एसएस बजाज की। नया रायपुर में पर्यावास भवन के इनाग्रेशन के मौके पर सीएम की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने बजाज को याद किया। सीएम बोले, कहां हैं, बजाज….आया है कि नहीं….। फिर बजाज को देखकर बोले, हूं….। इसने गजब का काम किया। नया रायपुर का जब भी बात होगी, बजाज को लोग याद करेंगे। बजाज के लिए इससे बड़ा आनर क्या होगा। असली कमाई तो यही है।

अब मयंक भी…

बिलासपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव इतनी जल्दी विवादों में फंस जाएंगे, उन्होंने खुद भी नहीं सोचा होगा। गौरांग हत्याकांड में जिस तरह उन्होंने हड़बड़ी में प्रेस कांफ्रेंस कर स्टोरी सुना डाली, वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। बिलासपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश में सवाल उठ रहे हैं कि एसपी ने ऐसा क्यों किया। वजह क्या रही? जबकि, सच्चाई भी वही है, जो मयंक ने बताई। पुलिस के कई अफसरों ने वह वीडियो देखा है, जिसमें गौरांग सीढ़ी से गिर रहा है….उसका पैर उपर और सिर नीचे है। लेकिन, आश्चर्य है, पुलिस ने इसे मीडिया को नहीं दिखाया। असल में, आंदोलन की चेतावनी के कारण पुलिस ने आनन-फानन में मामले का खुलासा कर लोगों के मन में वहम पैदा कर दिया। खैर, मयंक भी क्या करें। बिलासपुर आईजी पवनदेव को जब हटाया गया था, तब ही इसी कालम में मैंने लिखा था कि बिलासपुर पुलिस पर राहु-केतु का प्रकोप चल रहा है। जयंत थोरात, अजय यादव, राहुल शर्मा, बीएस मरावी, राजेश मिश्रा, जैसे ढेरों नाम हैं, जिन्हें समय से पहले हटना पड़ा या फिर स्वर्गवासी हो गए। बिलासपुर रेंज की एक महिला के चलते तो पूरा पुलिस महकमा हिल गया। गुड वर्क के बाद भी पवनदेव को हटना पड़ गया तो पड़ोसी रेंज रायपुर के आईजी और एसपी भी निबट गए। महिला का केस नहीं हुआ होता, तो यकीन कीजिए जीपी अभी भी रायपुर आईजी होते और बद्री यहां के एसपी। खैर, जब जागे सवेरा। डीजीपी को बनारस के किसी पंडित को बुलाकर बिलासपुर में ठीक से पूजा-पाठ करा देना चाहिए।

मुखर होने का डर

कांग्रेस के बागी विधायक आरके राय और सियाराम कौशिक पार्टी को खुला चैलेंज कर रहे हैं। लेकिन, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही, तो इसकी वजह उनके मुखर होने का खतरा है। अमित जोगी के केस में पार्टी को इसका साबका भी पड़ा है। इलेक्ट्रानिक चैनलों को बाइट देने के दौरान नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के जुबां से निकल ही गया, अमित जोगी को निष्कासित करने के बाद वे ज्यादा मुखर हो गए। लिहाजा, दोनों के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी।

जोगी शो और पुलिस

छत्तीसगढ़ बंद फ्लाप होने के बाद भी अजीत जोगी ने अपना माहौल बना ही दिया। सियासत के इस चतुर खिलाड़ी को 27 जुलाई की शाम को ही अहसास हो गया था कि बंद सफल नहीं होगा, जब चेम्बर आफ कामर्स ने समर्थन देकर वापिस ले लिया था। दरअसल, जनता कांग्रेस का पहला बंद था। अगर फ्लाप होता तो बीजेपी से अधिक कांग्रेस ताली बजाती। इसलिए, जोगी ने पैंतरा बदला। 28 जुलाई की सुबह सबसे पहले पुलिस पर उन्होंने बंगले में नजरबंद करने का आरोप लगाकर चैनलों को ब्रेकिंग न्यूज दिया। इससे चैनलों का ध्यान फ्लाप की ओर से हट गया। इसके बाद जोगी का सर्किट हाउस के पास जो हाईप्रोफाइल शो चला, उसे सभी ने देखा और पढ़ा ही। बीजेपी के चंपारण चिंतन शिविर की खबर गायब थी। चर्चा में सिर्फ जोगी रहे। कई बार तो लगा कि असली कांग्रेस यही है? हालांकि, जोगी के आंदोलन को सफल बनाने में पुलिस का भी बड़ा हाथ रहा। जोगी जब बंगले से निकले 300 से अधिक पुलिस वाले उनके पीछे हो लिए। पुलिस ने सिविल लाइन एरिया को जंग के मैदान में तब्दील कर दिया। सीएम हाउस के चारों ओर पहली बार इतनी सुरक्षा देखी गई। जोगी और जोगी के लोग घर लौट चुके थे, लेकिन उनका खौफ ऐसा कि फोर्स रात 10 बजे तक मोर्चे पर डटी रही। जोगी को कायदे से पुलिस को थैंक्स बोलना चाहिए, उनके शो को सफल बनाने के लिए। आखिर, 50-60 कार्यकर्ताओं के लिए 500 से अधिक जवानों की ड्यूटी लगाई गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस रिटायर आईएएस को एक रिटायर नौकरशाह बचाने में लगे हैं तो एक वर्तमान नौकरशाह निबटाने में?
2.क्या राजस्व बोर्ड के चेयरमैन केडीपी राव की एकाध महीने में मंत्रालय वापसी हो जाएगी?

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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