बिलासपुर– सुप्रीम कोर्ट जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा है कि जज को भावुक तो होना चाहिए लेकिन फैसला लेते समय आवेग और व्यक्तिगत से दूर रहना चाहिए। निर्णय संविधान के अनुसार और कानून के मुताबिक होना चाहिए। हाईकोर्ट में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में जस्टिस मिश्रा ने कहा कि न्याय की प्रति आस्था को हर हालत में बनाकर रखना न्यायधीशों की जिम्मेदारी है।
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छ्त्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा आयोग और राज्य न्यायिक अकादमी के एक दिवसीय कार्यशाला को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा ने संबोधित किया। हाईकोर्ट के आडिटोरियम में आयोजित सम्मेलन में जस्टिस मिश्रा ने न्यायाधीशों की संस्थागत नैतिकता पर व्याख्य़ान दिया। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि न्यायिक संस्था की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए जजों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। न्याय के प्रति लोगों में सम्मान,सर्वोच्चता और आस्था बनी रहे। इसलिए संस्थागत नैतिकता का होना बहुत जरूरी है।
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि एक जज कोर्ट की ड्यूटी और उसके बाद अलग भूमिका नहीं रह सकता है। जजों को हर हालत में नैतिकता के उच्च मापदंडों का पालन करना होगा। एक जज की शक्ति उसका अपना नैतिक मूल्य और आदर्श है। उसे अपना मार्गदर्शक खुद बनना होगा। सुप्रीम कोर्ट के जज ने जजो की शारीरिक गतिशीलता पर जोर देते हुए कहा कि न्यायधीश अपने मष्तिष्क को हमेशा सजग रखें।
कार्यशाला को बिलासपुर हाईकोर्ट चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णन ने भी संबोधित किया। जस्टिस राधाकृष्णन ने कहा कि न्याय प्रक्रिया से जुड़े लोग न्यायिक विषयों का अनवरत अध्ययन करें। किताबों के अलावा कम्प्यूटर, इंटरनेट पर भी नजर रखें। इससे न्यायिक दक्षता में सुधार होगा। जस्टिस राधाकृष्णन ने बताया कि जजों को संविधान, कानून, प्रशासन का प्रहरी कहा जाता है। जनता हमारे कामकाज का मूल्यांकन करती है। हम पर पहरा करती है। हमें अपने निर्णय, प्रदर्शन और सम्पर्कों को लेकर सचेत रहने की जरूरत है।
कार्यशाला के दौरान प्रश्नोत्तर काल में जजों की जिज्ञासाओं का सुप्रीम कोर्ट जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस राधाकृष्णन ने समाधान किया।