वो…तो…सब ठीक है,पर बिलासपुर को बिलासपुर कब बनाएंगे.?

Chief Editor
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inde_day_index(गिरिजेय)
इस बार आजादी पर्व 15 अगस्त के साथ भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं वर्षगांठ की भी चर्चा है….।और इस बीच एक नारा दिया जा रहा है कि गंदगी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद , सम्प्रदाय, जातिवाद, गरीबी, बेकारी, बीमारी, निरक्षरता  …भारत छोड़ो…. नया भारत बनाना है।नारा बहुत अच्छा है और संकल्प भी बहुत अच्छा है। देश की तस्वीर बदलने के लिए यह बहुत जरूरी है। आजादी के सत्तर बरस बाद भी अगर हम इन चीजों से जूझ रहे हैं,तो यकीनन इनका मुकाबला कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हम एक तयशुदा वक्त पर इस पर अपनी जीत हासिल कर सकें।सीजीवाल

bridge_1_bspवो….. तो … सब ठीक है। लेकिन बिलासपुर शहर में खड़े होकर इस नारे के बारे में सोचें तो सहज ही जेहन में सवाल उठता है कि नया भारत तो बनाएंगे लेकिन बिलासपुर को बिलासपुर कब बनाएंगे….? अपना बिलासपुर शहर भी देश का हिस्सा है। लिहाजा इस शहर में भी वहीं सब चुनौतियां  हैं, जो आजादी के सात दशक बीत जाने पर भी  देश के दूसरे हिस्से में नजर आती हैं। लेकिन इस सचाई को भी छुठलाया नहीं जा सकता कि हमारी चुनौतियों की लिस्ट में और भी बहुत सी चीजें जुड़ गईं हैं।सीजीवाल, जो पिछले दो-तीन दशक और खासकर अपना छत्तीसगढ़ प्रदेश बनने के बाद जुड़ गईं हैं।आजादी पर्व पर देश जब यह हिसाब लगा रहा है कि बीते बरसों मे हमने क्या पाया – क्या खोया ….. तो हमारा भी हक बनता है कि केलकुलेटर लेकर बैंठें और कुछ हिसाब लगाएं।सीजीवाल

bridge_2_bspइस शहर ने बीते बरसों में क्या पाया है, यह तो सभी के सामने है। लेकिन बहुत कुछ खोया भी है। अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में बिलासपुर की अलग पहचान थी। वह कहीं खो गई लगती है। उस समय बिलासपुर की ऐसी पहचान थी कि यहां आकर सरकारी- गैरसरकारी संस्थानों में काम करने वाले लोग रिटायरमेंट के बाद यहीं बसर करना चाहते थे। और इस शहर ने लोगों को पनाह दी…… उन्हे अपना बना लिया।सीजीवाल, यहां की हरियाली सभी को अपनी ओर खींचती रही……..। यहां का पानी सबको भाता । लोगों की सरलता – सहजता और बेतकल्लुफ मेल- मुलाकात का अंदाज भी इस शहर की पहचान है……. तभी तो यह शहर सभी को अपना बना लेता है और हर किसी को यह शहर अपना लगने लगता है।सीजीवाल

                    lik rad 1लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद कुछ तो ऐसा हुआ है कि यह शहर अपनी पहचान खोता जा रहा है। डस्टर चलाकर बिलासपुर की पहचान मिटाने की कवायद के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक यही बात नजर आती है कि सूबे में सरकार चला रहे लोगों ने एक अदद शहर को ही पूरा प्रदेश मान लिया है। ताज सिर्फ एक शहर के ही माथे पर सजाया जा रहा है और प्रदेश के दूसरे शहर कहीं गिनती में नहीं हैं। अपना बिलासपुर तो जरूर प्रायरिटी में कहीं नजर नहीं आता। इसका अहसास हर किसी को होता है, जब कोई न्यायधानी से राजधानी या राजधानी से न्यायधानी की ओर सफर करता है। बीच में पड़ने वाले तिफरा रेल्वे ओवरब्रिज को क्रास करते समय ही इसकी झलक मिल जाती है , जब “सावधान संकीर्ण पुलिया” की तर्ज पर बने संकरे से पुल को पार करते हैं। तब लगता है कि कुछ ऐसी ही संकीर्णता … तंगदिली बिलासपुर  की तरक्की को लेकर भी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों के मन में बसी हुई है।

                       link rd 2कोई भी तुलना कर यह समझ सकता है कि क्या और कहीं इतना सकरा ओवरब्रिज बनाया गया है। जाने कब से सुन रहे हैं कि शहर की सड़क पर ट्रेफिक का दबाव कम करने के लिए महाराणा प्रताप चौक पर फ्लाई ओवर बनने वाला है। लेकिन आज तक उसकी नींव का पत्थर भी नहीं रखा गया है। बाकी सड़क, सीवरेज, स्कूल , अस्पताल, गार्डन जैसी चीजों की मिसाल तो अपनी जगह पर है ही। शहर की गरमी बढ़ रही है और जमीन के नीचे का पानी और नीचे चला जा रहा है। सड़क किनारे के पेड़ों पर टंगिया चलाकर व्यवस्था के जिम्मेदार लोग ही यहां की हरियाली को तबाह कर रहे हैं। क्योंकि शहर में चार पहिया गाड़ियों की तादात बढ़ गई है। कोई इनसे पूछ सकता है कि ये चारपहिया गाड़ियां किनके पास आईं हैं और किसे चौड़ा रास्ता चाहिए …? शहर का आम आदमी तो तरक्की के किस रास्ते पर गुमान करेगा, उसे तो खुद  अपने चलने के लिए भी अच्छी सड़क की तलाश है।वह तो बेचारगी में दिल से यही गुहार लगा रहा है कि “ मुझे मेरा पहले वाला बिलासपुर वापस लौटा दो………।“

                            ऐसा नहीं है कि बीते बरसों में बिलासपुर के हिस्से में कुछ भी नहीं आया है………। कुछ आया भी है। लेकिन उन्हे पाने के लिए  बिलासपुर को सड़कों पर उतरकर अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ी है। हाई कोर्ट,एसईसीएल, रेल्वे जोन,सेन्ट्रल युनिवर्सिटी , मेडिकल कॉलेज ऐसे कुछ उदाहरण हैं।जिन्हे शहर ने खुद लड़कर हासिल किया है।आज के हालात देखकर लगता है कि अपने लिए लड़ने के उस जज्बे को फिर से जिंदा करने की जरूरत है। शायद तभी  न्यायधानी और राजधानी के बीच तरक्की के “ ब्रिज” की “ तंगदिली ” दूर होगी । नहीं तो हम न्यायधानी कहलाते हुए भी न्याय से वंचित रहेंगे। और नया भारत बनाने का नारा देने वालों से यह सवाल भी नहीं पूछ पाएँगे कि बिलासपुर को बिलासपुर कब बनाएंगे……?सीजीवाल

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