(रुद्र अवस्थी) इसे एक इत्तफाक ही कहा जा सकता है कि एक तरफ राजधानी में बैठी सरकार छत्तीसगढ़ में सड़क नेटवर्क के विकास और विस्तार के लिए 2800 करोड़ रूपए की 27 नई सड़कों के निर्माण प्रस्तावों को मंजूरी दे रही थी और इधर न्यायधानी-राजधानी के बीच में नांदघाट-लिमतरा में लोग गड्ढों के बीच सड़क को ढूंढ रहे थे……….। सरकार एक तरफ सड़कों के लिए रुपयों की बरसात कर रही थी और दूसरी तरफ मौसम की बारिश के चलते एक पुरानी सड़़क ही मौके से गायब नजर आ रही थी………। जिस सड़क की बात हो रही है, वह न्यायधानी और राजधानी को जोड़ने वाला हाई-वे है। जिसमें रोजाना हजारों की तादात में छोटी और बड़ी गाड़ियां चलती हैं। गरीब भी चलते हैं…..अमीर भी चलते हैं……संत्री भी चलते है…..मंत्री भी चलते हैं……राजा भी…रंक भी सफर करते हैं…….। इस सड़क से गुजरने वाले सभी लोग गड्ढों के बीच सड़क तलाशने की कोशिश करते हुए अपनी मंजिल की ओर रवाना हो जाते हैं……..। लेकिन इस सड़क की हालत देखकर ऐसा तो नहीं लगता कि किसी को भी इस बात की फिकर है कि आखिर हम और हमारे छत्तीसगढ़ की मंजिल किस ओर है।हम किधर जा रहे है…..।
हाल ही में सूबे की सरकार ने जिन सड़कों के लिए 2800 करोड़ की मंजूरी दी है, उससे करीब सवा नौ सौ किलोमीटर की सड़क बनने वाली है। सरकार का काम जैसा चलता है उसे देखकर तो यह कहना मुस्किल है कि इन सड़कों का काम कब तक पूरा होगा और बनने के बाद इन सड़कों की हालत कैसी होगी। लेकिन नांदघाट- लिमतरा में सड़क की हालत देखकर यह जरूर लगता है कि छत्तीसगढ़ की सड़कों का हाल जानना हो तो नजीर के तौर पर इसे शामिल किया जाना चाहिए……।जिस जगह पर प्रदेश की सड़क का यह “इश्तहार” लगा है, वहां पर बिलासपुर-भाठापारा-रायपुर की ओऱ से आने वाली सड़कों का संगम है। यह राजधानी- न्यायधानी को जोड़ने वाला राजमार्ग है। इस तस्वीर को देखकर कोई भी कह सकता है कि यहां पर सड़क कहीं नहीं है। अलबत्ता कीचड़ ही कीचड़ नजर आ रहा है। जैसे खेतों में धान की बोआई रोपा या बोता पद्धति से करने की बजाय लेई पद्धति से करने के लिए किसी किसान ने लेई “फदका” रखी हो………। गड्ढें ऐसे हैं कि छोटी कार का पहिया ही पूरा इसमें समा जाए……। ऐसी सड़क पर रफ्तार तो क्या रहेगी….. हां अक्सर जाम की स्थिति बन जाती है और फिर गाड़ियों को निकलने में घंटों लग जाते हैं………. ।
यह बात तो साफ है कि सूबे की सरकार सड़कों के लिए सरकारी खजाने से काफी फण्ड दे रही है। अभी हाल ही में 27 नई सड़कों के लिए एक-दो करोड़ नहीं……. अट्ठाइस सौ करोड़ की मंजूरी दी गई है। सरकार के इस फैसले को याद करते-करते अगर कोई अभी नांदघाट-लिमतरा से गुजरे तो मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब सड़क कहीं नहीं है तो फिर सरकारी खजाने का रुपया कहां जा रहा है…………। फिर मन अपने -आप से पूछ बैठता है कि ऐसे आम राहगीरों के सवालों के जवाब देने की जिम्मेदारी किसकी है……… आखिर जवाबदेही किसकी है………। लोग-बाग तो अपनी कार, बस , टैक्सी-टेम्पों या फटफटी में बैठे-बैठे सड़क को गरियाते हुए भ्रष्टाचार की तह तक पहुंचकर – बतियाकर ठीक रास्ता मिलने के बाद फिर फर्राटा भर लेते है।फिर अपने में भूल गए……….. उस सड़क को वो याद करे , जो उधर जाए…….. अपने को क्या……। इस तरह रोज जिसकी बारी आती है वह उस रोड पर चलते हुए याद कर लेता है…..। कोई-कोई अपने -आप से पूछ बैठता है कि- जब हाइवे का यह हाल है तो फिर इंटीरीयर के रोड की क्या हालत होगी………..। फिर पूछता है कि – रायपुर-बिलासपुर रोड तो इंटीरीयर में नहीं है ना………. । राजधानी-न्यायधानी के बीच कोई काम तो पड़ता होगा….. ना …………जिसके लिए बड़े-बड़े-बड़े अफसरों का भी तो आना-जाना इस रोड से होता होगा…..ना…। मंत्री-विधायक लोग भी तो आते-जाते होंगे ….. ना…….अभी तक तो शायद ऐसी कोई मोटर कार नहीं निकली है……. ना …….जो जमीन-रोड के फीट-दो फीट ऊपर चले…….। फिर तो उनकी गाडी भी हिचकोले खाती होगी…… ना…।बिलासपुर-रायपुर के बीच की यह सड़क तो इसलिए भी अहम् है…..ना…… चूंकि हमारी जमीन के नीचे कुदरत के अनमोल तोहफे के रूप में मिले -कोयले,एल्युमिनियम, लोहे की ढुलाई भारी-भारी लारियों से इसी सड़क के जरिए होती है …… ना…..।
इस सड़क से गुजरने वाली गाड़ियों के काँच से भीतर से बाहर झाँक रहे अबोध बच्चे के भी मन में यह सवाल कौंध जाता होगा कि भ्रष्टाचार शायद ऐसा ही होता होगा ……. ना…। सड़क भी ऐसी ही गयाब हो जाती होगी ……… ना…..। विपक्ष में बैठे लोग ऐसे ही भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर विरोध करते हैं……… ना…….। जब तक विपक्ष में बैठते हैं, जभी तक इसका विरोध करते हैं और अगली बार अगर वो खुद सरकार में बैठ गए तो उनके विपक्ष में बैठे लोग भ्रष्टाचार का मामला उटाकर विरोध करना शुरू कर देते हैं….. ना…..। अफसर-बाबू भी सुनते ,सब की हैं मगर करते अपने मन की …………..है, ना……..। इस तरह के सवालों का जवाब कौन देगा…….?किसी को किसी सवाल का जवाब नहीं मिलता , राहगीर उल्टा और ही उलझ जाता है…….। पूरा खेल समझ नहीं आता है……। यह भी नहीं सूझता कि जब सड़क हमारी है…… तो उसे बनाने वाला कौन है……….? और उसकी इस दुर्दशा के लिए असली जिम्मेदार कौन है….? हम ही मालिक और हम ही अपनी सड़क का सच जान नहीं पाते……..।
फिर जब सपाट सड़क मिली तो इस दुखद अतीत को भुला देते हैं……… मंजिल की ओर आगे बढ़ जाते हैं,,। है…….ना पाँव के नीचे से सड़क खिसकने जैसी बात……….।क्या यह मजेदार नहीं लगता कि उस सड़क से गुजरने वालों में ज्यादातर तो उसकी बदहाली के लिए जिम्मेदार नहीं है और फिर भी उसे भुगतते हैं और अगर धोखे से कोई जिम्मेदार इंसान भी वहां से गुजरता हो तो उसे भी थोड़ी देर के लिए भुगतना तो पड़ता ही है……..। चूंकि कोई अभी ऐसी गाड़ी नहीं बनी है कि कोई सड़क के ऊपर ही ऊपर से ही गुजर जाए………। खुली आँखों से भी किसी को यह नजर नहीं आता कि – नादघाट में तो सड़क ही गायब है…….. । बल्कि सड़क के बीचो – बीच बिछा दुर्दशा का “इश्तहार” बदहाली में चीखकर कह रहा है कि ……नांदघाट के सफर में गुजर जाते हैं ,जो मुकाम…….वो…….. फिर याद नहीं आते……….।