कर्मचारियों के सर्विस रिकार्ड की छानबीन पर पी आर यादव बोले-सरकारी विभागों में पनपेगा “यस बॉस कल्चर”

Chief Editor
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P.R.YADAVबिलासपुर।”छत्तीसगढ़ सरकार जिस तरह  प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के सर्विस रिकार्ड की छानबीन करा रही है, उससे प्रदेश में कार्यसंस्कृति का विकास नहीं हो सकेगा और न व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। बल्कि इससे सरकारी दफ्तरों में ” यशबॉस कल्चर  ” शुरू हो  जाएगा। और निचले दर्जे के कर्मचारियों पर दबाव बढ़ जाएगा।यदि सहीं में सरकारी कर्मचारियों के कामकाज का मूल्यांकन करना है तो डायरी सिस्टम लागू करना चाहिए ।जवाबदेही तय होनी चाहिए । यदि सही में गंगा की सफाई की मंशा है तब तो पहले गंगोत्री यानी आईएएस -आईपीएस – आईएफएस से इसकी शुरूआत होनी चाहिए।”ये बातें प्रदेश के जाने – माने कर्मचारी नेता और छत्तीसगढ़ प्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष पी. आर. यादव ने सीजीवाल से एक बातचीत के दौरान कहीं।
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                                           पी. आर. यादव ने कहा कि सरकारी दफ्तरों में कार्यसंस्कृति का विकास होना चाहिए। जिस काम के  लिए कर्मचारियों को नियुक्ति दी गई है वह काम समय पर पूरा होना चाहिए । आम लोगों को सुविधा मिलना चाहिए । इसके लिए समय -समय पर कर्मचारियों के काम- काज का मूल्यांकन भी जरूरी है। लेकिन इसके लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि हर – एक  कर्मचारी को एक डायरी दी जाए । जिसमें वह हर एक दिन के अपने काम काज का ब्यौरा दर्ज करे। यह डायरी उसके ऊपर के कर्मचारी – अधिकारी नियमित रूप से चेक करते रहें। सरकार चाहे ते इस पर नजर रखने के लिए एक विभाग भी बना सकती है। आज के दौर में ई-मेल और इन्फर्मेशन टेक्नालॉजी के जरिए भी इस  पर नजर रखी जा सकती है। इससे काम भी समय पर होंगे। और  प्रशासन को यह पता चल सकेगा कि किसने – कब – क्या काम किया। इस प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता- निष्पक्षता औऱ प्रामाणिकता रहेगी।

                                                          पी. आर. यादव ने कहा कि इस समय जिस तरह कर्मचारियों के सर्विस रिकार्ड की छानबीन कराई जा रही है , उससे काम- काज का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं हो सकेगा। बल्कि यश-बॉस संस्कृति की शुरूआत हो जाएगी। चूँकि व्यवस्था ऐसी है कि हर महकमें में इमिडिएट बॉस ही किसी कर्मचारी का सी.आर. लिखता है। और यह बॉस की पसंद – उसके रिलेशन पर निर्भर होता है कि वह किसके सी. आर. में क्या लिखे।ऐसे में आपसी वैमनस्य भुनाने का मौका भी   मिल सकता है और बॉस के करीबी लोग किसी को भी फँसाने का काम कर सकते हैं। वैसे भी जिस कर्मचारी पर अनैतिक काम करने के आरोप हैं या कोई मामला कोर्ट में विचाराधीन है , उसे लेकर पहले से ही प्रावधान बने हुए हैं। उस आधार पर कार्रवाई की जा सकती है।

                                                      एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि कर्मचारियों को लेकर सरकार जो कवायद कर रही है, उसके सकारात्मक परिणाम के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं।बल्कि मंशा कर्मचारियों पर दबाव बनाने की नजर आती है। इसमें कुछ निचले तबके के कर्मचारियों को टारगेट कर उन्हे निपटाने की कोशिश हो सकती है। उन्हे बली का बकरा बनाया जा सकता है। साथ ही यह भी सोच हो सकती है कि समय- समय पर  सरकार के परफार्मेंस को लेकर यह गात उठती रही है   कि सरकार की प्रशासन पर कोई पकड़ नहीं है। शायद इस कवायद के जरिए सरकार इससे उबरना चाह रही है।

                                                    पी. आर. यादव यह भी कहते हैं कि अगर सही में गंगा की सफाई का मकसद है तो शुरूआत गंगोत्री से होनी चाहिए । बड़े स्तर पर आईएएस- आईपीएस और आईएफएस अफसरों के खिलाफ जो मामले ठंडे बस्ते में पड़े हैं, उन पर नजर डालने और समय रहते कार्रवाई की जरूरत है। ऊपर स्तर पर ही यदि साफ – सुथरा काम होगा तो निचले स्तर पर सुधार अपने आप ही आ जाएगा।

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